शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

हवाओ में गूंजते शब्द (गुरु जी की कलम से )

शब्द जो गूंजते रहे
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!शब्द जो गूंजते रहे
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!

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