भारत देशीयों व विदेशियों के लिए लूट का खुला चरागाह,
एक बार फिर महान शहीदों की स्मृतियों और विरासत को संजोना है। संकल्प और विवेक रूपी ज्योति को प्रज्जवलित करना है। स्वस्थ सकर्मठ जीवन ऊष्मा से स्पन्दित यथार्थवाद की पूँजी रूपी शक्ति से रक्तपिपासु सत्ता के खिलाफ अन्तिम न्याय के नायकों उठो सत्ता के इस दमन चक्र को उठा फेंको। याद करो उन शहीद क्रांतिकारियों की कुर्बानियां जो हँसते-हँसते फांसी के फंदो को चूम गये। अंग्रेजों के डण्डों व गोलियां खाकर देश को आजाद कर गये। क्या आज हम इनके सपनों को साकार कर पाये? क्या उनकी कुर्बानी बेकार चली गयी? क्या आम जनता कुछ मुट्ठीभर नेताओं के कारण जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर हो गये? क्या यही हमारा लोकतंत्र है? आज भी जुल्म सितम क्यों सह रहे है? लोकतंत्र के नेता आज बेमानी भ्रष्टाचार धोखा देकर आम जनमानस को सत्ता के लालच में नंगा नचा रहे है। क्या यही सोचकर 1857 की क्रांति की चिंगारी सुलगी थी। हमारे महान क्रांतिकारी और लाखों करोडो जनता ने आजादी की लडाई में शहीद हुये क्या उनका खून युँही व्यर्थ जायेगा? आज की परिस्थितियों को देखकर तुम्हें क्या लगता है? नेता केवल अपने स्वार्थों के लिए ही कार्य करते है न कि जनभावना के लिए। आम जनता का पैसा, ये नेता लोग अपनी संपत्तियां इकठ्ठा करने में लगाते है देश का पैसा विदेशी बैंको मे ठूस रखा है। जनता का पैसा जनता के लिए होना चाहिए परन्तु ऐसा नही, नौजवान पढ़-लिखकर ठोकरे खाने को मजबूर है ऐसे करोडो नौजवान है जो पढ़-लिखकर मानसिक तौर से परेशान है । कोई रोजगार नही है सरकार उन्हे अपने वोट बैंक के लिए 500 रू की भीख देते है, क्या यह हमारी उक्त शिक्षा का स्वर्णमय पुरस्कार है? ज़रा सोचो !! आज भी क्रांतिकारी है, क्या आप आज के नौजवानों में भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल तो नही देखते ? क्या आप आज नही देखते कि चन्द्रशेखर जाती व वोट (आरक्षण) की राजनीति का विरोध करता हुआ सडको पर पुलिस की लाठियाँ खा रहा है? भगतसिंह खेतो मे गेंहूँ के दाने नही उगाये है बन्दुके कहाँ से उगेगी। राजगुरू, सुखदेव डिग्रियाँ उठाये नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे है। बिस्मिल व उधमसिंह सरकारी भत्ता पाने के लिए लाईनों में खडे है, असफ्फाक उल्ला खाँ जब घर से निकलता है तो लोग उसे पाकिस्तानी कह कर चिढाते है, बटुकेश्वर दत्त जैसे लोगो को जनता जानती नही, वीर सावरकार आज पेट की लडाई लड रहे है, बहुमत सुभाषचन्द्र बोस के साथ न होकर बाहुबलियों के हाथों में है। एक बार फिर इतिहास दोहराने के लिए हमारे दिलो दिमाग के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। क्या हम देश को यूँही चुपचाप इन क्रांतिकारीयों के खण्डित और अधूरे सपनों को एक भयानक तस्वीर बनता देखते रहेंगें? क्या इस देश के युवा यूँही हाथों में हाथ रख बैठै रहेंगे,”अपने स्वार्थों के लिए नेता देश को बर्बाद करने के लिए समझौते” करते हुये रीढविहीन केंचुए की तरह रेंगते रहेंगें देश की तमाम सम्पदा की निर्मात्री 90 फीसदी आबादी पर परक फीसदी लुटेरें (नेताओं) को सवारी गाँठते रहेंगे और खुद इस या उस चुनावी मदारी का जमूरा बनना स्वीकार करते रहेंगे? क्या हमारा देश देशी-विदेशी लूट का खुला चरागाह बना रहेगा और हम नशे की नींद सोते रहेंगे? कभी नही ! हमारा द्रढ विश्वास है कि अत्याचार-अनाचार के लिए संकल्प बाधने वाले साहसी युवाओं की कमी नही है। बस जरूरत है एक नई सोच कि क्रांति की एक निर्णायक युद् छेडने के लिए और महान शहीदों के नक्शे पर चलकर उनके स्वप्नों को साकार करने की। भगतसिंह की वीरता और कुर्बानी से तो परिचित है लेकिन इस देश के पढे लिखे नौजवान तक यह नही जानते कि किटकिटाऊँगा वर्ष की छोटी सी उम्र मे फांसी का फन्दा चूमने वाला वह जाबाज नौजवान कितना औजस्वी प्रखर और दूरदर्शी विचारक था। यह हमारी जनता की विडम्बना है और सत्ताधारियों की साजिश का नतीजा है अब यह हमारा काम है कि हम भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को जन-जन तक पहुँचायें, उनकी स्मृतियों से प्रेरणा लेकर और विचारों के आलोक में अपने देशकाल की परिस्थितियों को समझकर नई क्रांती की दिशा व दशा तय करें और फिर उस राह पर पूर्ण विश्वास के साथ एक नई जनक्रांति का श्रजन करके आगे बढे। क्रांतिकारीयों का लक्ष्य ब्रिटिश शासन और उपनिवेशवाद की गुलामी का खात्मा ही नही बल्कि उनकी लडाई साम्राज्यवाद, देशी पूंजीवाद के खिलाफ लम्बे ऐतिहासिक संघर्ष की एक कडी है। “उन्होंने उसी समय आगाह किया था कि काँग्रेस जनता की ताकत का इस्तेमाल करके हुकुमत की बागडोर देशी पूँजीपतियों के हाथों में सौंपना चाहती है और आजादी का अन्त साम्राज्यवाद के समझौते के रूप में ही हुआ। क्रांतिकारी 10 फीसदी थैलाशाही के लिए नही 90 फीसदी आम जनता मजदूरों, किसानों, नौवजवानों के लिए आजादी और जनतंत्र करना हासिल करना चाहती है और साम्राज्यवाद-साम्यवाद के खातमे के बाद पूंजवादियों को नष्ट कर उत्पादन राज-काज और समाज के ढांचे पर आम मेहनत कर जनता क राज हो। क्रांतिकारियों का यह सपना साकार नही हो सका क्योंकि अधूरी खण्डित आजादी के बाद जालिम शासन के जुबे को ढोते-ढोते 60 वर्ष बीत चुके है। मुठ्ठीभर मुफ्तखरों की जिंदगी चमकते उजाले में आम जनता की जिंदगी का अंधेरा और बढ चला है। सभी चुनावबाज पूंजीवद पार्टियों के साथ ही अपने लक्ष्य से विश्वासघात कर चुकी हैं। वामपंथी पार्टियों का खूनी चेहरा (नन्दीग्राम नरसंहार) आपके सामने है। सभी पार्टियां नंगी हो चुकी है। क्रांतिकारीयों की विरासत हमें ललकार रही है समय आ गया है जंk लगी तलवारों को नई धार देकर एक नई क्रांति का बिगुल बजाकर आगाज करें।
achha kadam hai bloger ki dunia me aap krantikari rajniti ko janm de sakte hai......dhanyabad..........bhavi sasakta lekhan ke lie subhkamna !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya or ojasvi lekhan he aaj desh ko esi hi krantikari lekhani ki zaroorat he
जवाब देंहटाएंkeep it up