सोमवार, 22 नवंबर 2010

" क्यों भटक रहा हे आज का युवा "

" क्यों भटक रहा हे आज का युवा "

आज युवा के कन्धों पर हम अपने देश के कल को देखते हें लेकिन क्या इस सदी का युवा सही मायने हमारे कल की पहचान को काबिज रख पाएगा! इस पर शायद मेरे जैसे कई लोगों के अलग अलग मत हो सकते हों ! युवाओं में आज जिस तरह से आगे बढ़ने की एक अजीब सी ललक देखने को मिल रही हे वो देखते ही बनती हे और वो काबिले तारीफ भी हे जिसका में हमेशा समर्थक रहा हूँ ! आजकी तेज दोड़ती जिंदगी में शायद हम लोग अपने बच्चों को कहीं भुला बैठें हें ! शायद हम अपनी तहजीब , संस्कृति व संस्कार को कुछ इस कदर भुला चुकें हें की हमें अपने बड़ों व छोटों से किस तरह से पेश आना हे इसकी तो परिभाषा ही बदल चुके हें ! अब इसके पीछे हम लोग किसको जिमेदार समझे क्या आज की तेज दौड़ती जिंदगी या वे लोग जो अपने परिवार के लिए कुछ सुख के पल भी नहीं निकाल पा रहें हें ? जिनको हमेशा ये ख्याल तो हे की आज कही शेयर बाज़ार नीचे तो नहीं चला गया मेरा लाखों का नुक्सान न हो जाए ! आखिर हम लोग ऐसे आराम का क्या करेंगे जिसके कारन हमें अपनों को ही खो देना पड़े ! जी हाँ ! मेरे कहने का सीधा मतलब ये हे की हम अपनों को खुद से दूर करने के लिए खुद जिमेदार हें ! अब हम अगर अपनों से दूर हो जाएगें तो इसका केसे पता चल पाएगा की हमारे बचे सही दिशा की और जा रहा हे या नहीं कियोंकि हमे तो अपने ऑफिस और अपने घाटे व मुनाफे की अधिक चिंता हे न की अपने बच्चों व परिवार की ! अब हम लोग इस तेजी से कहाँ जाना चाहतें हें , क्या हासील करना चाहतें हें इसका शायद ही कोई जवाव दे सके ! हम भारतवासी हें और हम सभी अपने और अपने परिवार की भलाई के लिए ही महनत करतें हें ! मेरे इस ब्लॉग का शीर्षक हे की " क्यों भटक रहा हे आज का युवा " जी हाँ ! आज का युवा भटक ही नहीं बल्की गुमराह भी हो रहा हे जिसके उपरोक्त सभी कारणों को में जिम्मेदार समझता हूँ ! अब देश जहाँ एक और विश्व स्तर पर अपनी पहचान कायम कर रहा हे वहीं मुझे आज के युवा की सोच पर बड़ी चिंता होती हे ! हम लोग आज भी अपनी कुछ खास बुराइओं को नहीं छोड़ पा रहे हें ! हम लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने में कही न कहीं चूक रहें हें ! जिसका परिणाम आज हमारे सामने हे आज न केवल बेरोजगार युवा बल्कि रोजगार प्राप्त युवा भी शराब ,चरस व इस तरह के कई हानिकारक नशों का आदि बनता जा रहा हे ! अब इस युवा पर किस तरह से भरोसा किया जाये की वो कल हमारी और देश की रक्षा कर पायेगा ? देश प्रगति की अपनी चरम सीमा की और बढ़ रहा हे और आज का युवा जो की बिना नशे के न रह सकता हो उस युवा से आप और हम केसी उम्मीद करें की वो किस देश की कल्पना ले कर चल रहा हे ! इस नशे के कारन वो अपनी हर हदों को लांग जाते हें ! अब आज कल के युवाओं में एक नया ही ट्रेंड अपना लिया हे नशे की धुन पर सवार होकर वे लोग अपने छोटे व बढे सभी को अपनी बोतल की तरह से देखने लागतें हें ! और अगर किसी नम्बर उनके पास हो तो फिर तो वो उसको आधी रात में ही कॉल कर लेतें हें अगर सामने वाला उसे समझा भी रहा हे की ये उसके लिए अच्चा न होगा लेकिन भाई इस समय तो वो ही सबका अकेला मालिक हे जी वो किसी की भला क्यों सुननें वाला हे इसका भुक्तान उसको कई बार तो अगले समझदार की बजह छोटी मोती माफी से ही चल जाता हे और कई बार बात ज्यादा बढ़ जाने पर नुकसान का कारन भी बन जाती हे ! तो क्या हम लोग अपने देश की इस युवा पीढ़ी से ये सब ही चाहतें हे या फिर देश का ये युवा आगे आकर कुच्छ ऐसा करे जिस न केवल उसके माँ बाप को ही नहीं पुरे देश को नाज हो !

इस ब्लॉग में मैं आप सभी के विचार चाहता हूँ !

एस एस नेगी

बुधवार, 17 नवंबर 2010

"पहल अ माइलस्टोन"

हिन्दी मासिक पत्रिका आप सोच रहे होंगे कि पत्रिकाओं के समुद्र में एक और पत्रिका आपके सम्मुख आ रही है। आपका ऐसा सोचना ग़लत भी नहीं, क्योंकि आए दिन कोई नई पत्रिका लेकर आपके सामने आ जाता है, और आपसे कहता है कि हम नई विचारधारा के साथ आए हैं, हममे कुछ ऐसा है जो आपको चकाचौंध कर देगा। और न जाने कितनी अच्छी बातों से आपका सरोकार कराया जाता है, जो आगे चलकर केवल बातें ही रह जाती हैं। एक मशहूर गीतकार के एक गीत के चंद बोल "कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब, वादे हैं वादों का क्या" के अस्तित्व को साकार करते इन बातों और वादों का दौर दोबारा आप तक नहीं पहुंचता। कई पत्रिकाएं व्यापार में लिप्त होकर अपना कर्तव्य भूल जाती हैं, तो कई रेवेन्यू जनरेट न कर पाने के कारण रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर के दफ्तर की किसी फ़ाइल में पंजीकृत मात्र रह जाती हैं। हमें भी आपसे कुछ ऐसे ही वादे करने चाहिए, लेकिन हम कुछ बोलने के बजाय कुछ करने में विश्वास रखते हैं। कहने के लिए बातों और वादों की हमारे पास भी कमी नहीं, हम भी यह बढ़ चढ़ कर कहना चाहते हैं कि हम क्रांति की नई ज्योत जलाएंगे, युवाओं को पहल करने का मौका देंगे, युवाओं को देश का भविष्य बनाएंगे। लेकिन हम ऐसा कोई वादा नहीं कर रहे, क्योंकि हमें पता है आज का युवा आंकड़ों पर विश्वास रखता है, और हम युवाओं के बीच आंकड़ों की इस ललक को जीवित रखने का उद्देश्य रखते हैं। हम आज के युवा हैं, हम आज के युवा की आवाज़ हैं, हम युवा के साथ हैं, युवाओं की विचारधारा से प्रेरित हैं। "पहल- अ माइलस्टोन" के आगमन के साथ कुछ विशेष तथ्य जुड़े हैं। आज हमारे देश की राजनीति में कुछ युवा नेता अपनी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, या कह सकते हैं कि अब युवाओं को राजनीति में अपना भविष्य दिखने लगा है, और वे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह हमारे देश की वृद्ध होती राजनीति को नव जीवन मिलने जैसा है। बुजुर्ग नेताओं के कंधे पर सवार होकर राजनीति के लिए पथ बदलना उतना आसान नहीं था जितना युवा नेताओं के साहसी और निर्भय कंधों पर सवार होकर हो सकता है. युवाओं की इस पहल से प्रेरित होकर हमने अपनी पत्रिका का नाम "पहल" रखने के बारे में विचार किया। परंतु हम आज के युवा की आवाज़ बनने की लालसा रखते हैं इसलिए हमें यह नाम पर्याप्त नहीं लग रहा था। फ़िर हमारा ध्यान आज के प्रचलित ट्रेंड के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए, एक बेस लाइन बनाने पर गया। और इस तरह "पहल" को "पहल - अ माइलस्टोन" के रूप में एक नया और अर्थपूर्ण नाम मिला। "अ माइलस्टोन", इसलिए क्योंकि प्रत्येक पहल एक मील का पत्थर बन जाती है। अर्थात पहल कभी व्यर्थ नहीं जाती। इतिहास इस वक्तव्य का साक्षी रहा है, सन 1857 में, मंगल पांडे ने जिस क्रांति की पहल की उसी क्रांति के परिणाम स्वरूप आज हम आजाद देश की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन सभी के बारे में कहना उचित नहीं होगा। बहरहाल, इतिहास अपनी जगह है, और भविष्य की अपनी राह है। हम आने वाले भविष्य के लिए काम करने के उत्सुक है। इसी उत्सुकत के कारण हम यह पत्रिका लेकर आपके सामने आए हैं। हम यह नहीं कहते कि कोई पहल करने के लिए आप इस पत्रिका को पढ़िए, हम तो यह चाहते हैं कि कोई पहल करने के बाद आप हमें बताएं, जिसे हम अपनी पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित कर सकें। हम अपनी ओर से एक पहल करने का प्रयास कर रहे हैं, और आपसे इस पहल का हिस्सा बनने का निवेदन।"

मुरार सिंह कंडारी न्यू दिल्ली

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

प्रगतिशील का अर्थ

वह कभी नहीं होगा। प्रगतिशील किसी रुढ़ि को नहीं लाना चाहेगा। प्रगतिशील का अर्थ ही यही है कि हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जहां हम किसी को रुढ़ि में नहीं बांधेंगे। आप पूछ सकते हैं फिर समाज कैसे चलेगा ? समाज बिना रुढ़ियों के चल सकता है और सभी नियम रुढ़ियां नहीं होतीं। जिन नियमों को हम भावावेश से पकड़ते हैं वे रुढ़ियां हो जाती हैं। जैसे उदाहरण के लिए-यह रास्ते का नियम है कि आप बाएं चलिए। किन्हीं मुल्को में रास्ते का नियम है कि दाएं चलिए। यह कोई रुढ़ि नहीं है। यह सिर्फ फार्मल व्यवस्था है।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप बाएं चलते हैं कि दाएं चलते हैं। एक व्यवस्था बना ली है कि बाएं चलिए। उससे चलने वालों को सुविधा होती है। लेकिन बाएं चलना कोई वेद वाक्य नहीं है और बाएं चलने की तख्ती लगाकर पूजा करने की कोई ज़रुरत नहीं है। और बाएं चलने के नियम को किसी दिन बदलना पड़े तो हम सोचें कि दाएं चलने का नियम बना लें तो किसी को यह झण्डा लेकर चलने की ज़्ारुरत नहीं कि हमारे धर्म पर हमला हो गया। जिस दिन दुनिया में प्रगतिशीलता होगी उस दिन नियम तो होंगे, रुढ़ियां नहीं होंगीं। रुढ़ि और नियम में फ़र्क़ है। जब किसी नियम को हम पागल की तरह पकड़ लेते हैं तब वह रुढ़ि बन जाती है। नियमहीन समाज नहीं हो सकता है, रुढ़िहीन समाज हो सकता है

गुरुवार, 11 मार्च 2010

Think of the great democracy we have…

An Important Issue!

Salary & Govt. Concessions for a Member of Parliament (MP)

Monthly Salary : Rs. 12,000/-

Expense for Constitution per month : Rs. 10,000/-

Office expenditure per month : Rs. 14,000/-

Traveling concession (Rs. 8 per km) : Rs. 48,000/-

(eg. For a visit from South India to Delhi & return : 6000 km)

Daily DA TA during parliament meets : Rs. 500/day

Charge for 1 class (A/C) in train : Free (For any number of times)
(All over India )

Charge for Business Class in flights : Free for 40 trips / year (With
wife or P.A.)

Rent for MP hostel at Delhi : Free.

Electricity costs at home : Free up to 50,000 units.

Local phone call charge : Free up to 1, 70,000 calls..

TOTAL expense for a MP [having no qualification] per year : Rs.32, 00,000/-


[i.e. 2.66 lakh/month]
TOTAL expense for 5 years : Rs. 1, 60, 00,000/-



For 534 MPs, the expense for 5 years :Rs. 8,54,40,00,000/- (Nearly 855 crores)

This is how all our tax money is been swallowed and price hike on our
regular commodities.........
And this is the present condition of our country :

855 crores could make their lives livable!!
Think of the great democracy we have…

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

नए रजिओ की कठिन डगर

किसी भी आंदोलन को सफल बनाने के लिए कुर्बानी देनी पड़ती है। सदियो से आंदोलन व क्रांतियों में युवाओ कि अहम भुमिका रही है, चाहे उतराखंड आंदोलन में अलग राज्य के लिए युवाओ की महत्वपूर्ण भुमिका या राजनीति मे भुचाल लाने वाले जे.पी आंदोलन जो युवाओ के दम पर सफल रहा। अब फिर युवाओ के दौड़ते लहू ने उबाल मारा है, तेलंगाना के लिए युवा छात्र आंदोलन में कूद पड़े, अगर युवा सड़को पर उतर आए तो सरकारो को झुकना ही पड़ता है।
अब आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका तेलंगाना आंदोलनकारीयो को इंतजार था।
टी.आर.एस के अध्यक्ष चंद्रषेखर का ग्याराह दिन तक आमरण अंषन चला, भारी दबाव के बाद केंद्र सरकार झुक गई और ग्रहमंत्री ने अलग राज्य के गठन कि कार्यवाही शुरू कर दी है।
परंतू इसी के साथ आंध्रा में कांग्रेस मे टूट के आसार साफ दिखई दे रहें है, अबतक 130 विधायक और 13 सांसदो ने इस्तीफा दे दिया, यदी इसे मंजूर कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार पर संवैधानिक संकट मंडराने लगेगा।
तेलंगाना के बाद अलग राज्य बनाने की होड़ सी लग गई है, बरसो से सुलगती नए राज्यो की मांग जोर पकड़ने लगी है। उत्तरप्रदे्श की मुख्यमंत्री मायावती ने उ.प्र को चार भागो में जैसे की हरितप्रदेश, बुंदेलखंड व पुर्वांचल के रूप में बाटने कि मांग केंद्र से कर डाली है, तथा पष्चिम बंगाल गोरखालैंड की मांग कर रहे जी.जे.एम के अध्यक्ष विमल गुरू भी आमरण अंशन पर बैठ गए हैं और इन्ही कि भाती सौराश्ट्र गुजरात से और मिथलांचल व भोजपुर को बिहार से अलग राज्य बनाने कि मांग ने भी जोर पकड़ लिया हैं।
बड़े राज्य होने के कारण दूर दराज के क्षेत्रो तक सरकारे विकास कार्य कराने में नाकाम रहीं हैं।
क्यो की ना तो वहाॅ शिक्षा, स्वासथय व रोजगार से जुड़ी कोई भी समस्या का हल नहीं हो पाया है जिसके कारणव्श युवा रोजी रोटी का जुगाड़ करने के लिए तेजी से शहर की तरफ पलायन कर रहें है। वही शहर भी भड़ती जंसख्या के कारणवश बिजली, पानी व रहने के लिए जमीन का न होना जैसी परेशानियो से जूझ रहें हैं।
नए राज्यो को बनाना एक कठिन डगर तो जरूर है लेकिन इस कठिन डगर को आसान नही बनाया गया और राजनीति के चलते इस डगर को और आयाम दीया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहावत अब पशताव होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत फिट बैठजाएगी।
मुरार सिंह कंडारी

शनिवार, 2 जनवरी 2010

महातमा की रहा पर तिवारी

महातमा की रहा पर तिवारी
चाहीय ३ कची कली क्वारी ,
रात को करते ह सवारी
काय करे कची कली,
बआचारी माय की ह,
लाचारी ,
महातमा की रहा पर तिवारी
मुना के बाप की
ह सवारी, काम सूत्र की ह त्त्यारी नाम ह तिवारी कोओक ससस्त्र