शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009
तजा तजा -नया नया
आपके शब्दों में बेकरारी की झलक है
आपके भावनाओ में उम्मीद की कसक है
कभी मन की आँखों से दिल की गहराई में तो झांकिए
एक लों है जो अब भी आप की उम्मीद लिए टिमटिमाता है (01)
आपके भावनाओ में उम्मीद की कसक है
कभी मन की आँखों से दिल की गहराई में तो झांकिए
एक लों है जो अब भी आप की उम्मीद लिए टिमटिमाता है (01)
हवाओ में गूंजते शब्द (गुरु जी की कलम से )
शब्द जो गूंजते रहे
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!शब्द जो गूंजते रहे
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!शब्द जो गूंजते रहे
नाद बनकर
हवा में
अदृश्य तिनको की तरह
टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास
बवंडर के तरह
घूरते रहे मुझे,
शब्द जो चुभते रहे
अंतस में मेरे रह - रह कर
काँटों की तरह
मैं चुनता रहा हर शब्द को
टाँकता रहा कलम की नोक से
सादे पन्नो पर
मिलते रहे शब्द से शब्द
शब्द जाल बनते रहे
फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में
फड - फडाते रहे पंख
निकलती रही ध्वनिया
फड - फड , सड़- सड़ ,
हा - हा , हु - हु तड - तड
कभी ठहाके
कभी तालिया
कभी अट्टहास
गूंजते रहे हवा में
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............
शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
karntnee
क्रांति या परिवर्तन
Date: 23/10/2009
हमारे अपने युग में यह धारणा बहुत प्रचलित रही है कि व्यर्थ में जान मारने से और पसीना से और पसीना बहाने से कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि हमारे ही युग में ऐसी कई महत्वपूर्ण क्रान्तियाँ और हलचलें हो गई है जो मानव कल्याण से भी परे की बाते हैं। कलम की आग से क्रान्ति का औजार बना कर युवाओं की ललकार से बडे-बडे परिवर्तन हुए अनेकों के सिंहासन डोल गए। यहाँ वेचारीता की अभिव्यक्ती नहीं व्यक्तों के मस्तिष्क पटल में भी विचारीक क्रान्ति उत्पन्न करना है। आग का मतलब आग ही होता है। चाहे वह किसी भी रूप मे हो। कलम की आग जो शब्दों रूपी लपटों मे बनकर जनमानस को तपा कर उष्मा वान बनाती है शब्दों के दम पर ही युवाओं मे जोश भरती है पश्चिमी सभ्यता मे गुम हो चुके काली चादर ओढ कर घुम रहे है। उन के लहु की आग ठंडी हो रही है वे केवल अपनी मिथ्यावादी दुनिया मे अपनी जवानी को खोखला कर रहे है। यह आग भावनाओं संस्कृतियों, न्यायिक व्यवस्था के प्रति युवा को अपनी शक्ति विवेक व ज्ञान के डाटा ही परिवर्तन लाना होगा। आज हमारे लक्ष्य के पीछे न्याय का महान बल है। आवश्क युद्ध अचित होता है। चाहे वह कलम का हो या शस्त्र का जहाँ आशा का एकमात्र स्त्रोत होता है यही समय पर सही शस्त्र का चयन करना ही बुद्धिमान होता है। राष्ट्र सबसे ज्यादा उघत है और उघत राष्ट्र मे परिवर्तन कठिन नहीं होता, आज उन राष्ट्रों के क्रांतिकारी नायकों की प्रशंसा एवं अनुकरण करे जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी क्रान्ती की ज्वाला को जलाया, चाहे कलम से शब्द रूपी गोले से दुशमनों को मनमस्तिष्क मे विस्फोटा करके या युवाओं की रक्त धमनियों को क्रान्ती की ज्वालामुखी के रूप मे 1875 मे फुटा था और लावा रूपी भगत सिंह, आजाद, सुभाष ने क्रान्तीरूपी चिंगारी आग मे परिवर्तन कर के दिखाया, समुद्र विभाजित है एक आतंकवाद को मिटाअने के लिए हमें तुफान रूपी जोश की आवश्यकता "चट्टान को तोडकर जब पानी की धारा वह निकलती है" मानों की कलम योद्धाओं के हाथ मे तलवार की धार है आप को मान्यता देने के लिए सभी इकठ्ठे हो चुके है, युवाओं के द्वारा ही हर क्रान्ती का आगाज होता है। वह फ्रांसी हो जर्मनी, इटली या स्पेन चीन की क्रान्ती हो युवाओं के जोश के आगे नतमस्तक हो चुके हैं। आज परमपराओं से बढकर किसी व्यक्ती की कीर्ति का कोई अन्य साधन नही हो सकता, महानता की निशानी जब इन परम्पराओं पर होती है तो वे उस व्यक्ती की पूजा प्रशंसा का विषय बना देती है। आज यदि नेताओं मे प्राक्रम की कमी न होती अनुयायियों में उस की कमी नहीं, ये अपनी शक्ती आपसी झगडों मे व्यर्थ कर देते है इसी कारण किसी भी नेता ने ऐसा पराक्रम और कौशल अभी तक नहीं दिखाया।
खुन अपना हो या पराया, बम घरों पे गिरे या सरहदों पे,
इन्हें तामीर जख्म खाती है, खेत अपना जले या गैरों के जिन्दगी फांकों से तिलमिलाती है।
Date: 23/10/2009
हमारे अपने युग में यह धारणा बहुत प्रचलित रही है कि व्यर्थ में जान मारने से और पसीना से और पसीना बहाने से कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि हमारे ही युग में ऐसी कई महत्वपूर्ण क्रान्तियाँ और हलचलें हो गई है जो मानव कल्याण से भी परे की बाते हैं। कलम की आग से क्रान्ति का औजार बना कर युवाओं की ललकार से बडे-बडे परिवर्तन हुए अनेकों के सिंहासन डोल गए। यहाँ वेचारीता की अभिव्यक्ती नहीं व्यक्तों के मस्तिष्क पटल में भी विचारीक क्रान्ति उत्पन्न करना है। आग का मतलब आग ही होता है। चाहे वह किसी भी रूप मे हो। कलम की आग जो शब्दों रूपी लपटों मे बनकर जनमानस को तपा कर उष्मा वान बनाती है शब्दों के दम पर ही युवाओं मे जोश भरती है पश्चिमी सभ्यता मे गुम हो चुके काली चादर ओढ कर घुम रहे है। उन के लहु की आग ठंडी हो रही है वे केवल अपनी मिथ्यावादी दुनिया मे अपनी जवानी को खोखला कर रहे है। यह आग भावनाओं संस्कृतियों, न्यायिक व्यवस्था के प्रति युवा को अपनी शक्ति विवेक व ज्ञान के डाटा ही परिवर्तन लाना होगा। आज हमारे लक्ष्य के पीछे न्याय का महान बल है। आवश्क युद्ध अचित होता है। चाहे वह कलम का हो या शस्त्र का जहाँ आशा का एकमात्र स्त्रोत होता है यही समय पर सही शस्त्र का चयन करना ही बुद्धिमान होता है। राष्ट्र सबसे ज्यादा उघत है और उघत राष्ट्र मे परिवर्तन कठिन नहीं होता, आज उन राष्ट्रों के क्रांतिकारी नायकों की प्रशंसा एवं अनुकरण करे जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी क्रान्ती की ज्वाला को जलाया, चाहे कलम से शब्द रूपी गोले से दुशमनों को मनमस्तिष्क मे विस्फोटा करके या युवाओं की रक्त धमनियों को क्रान्ती की ज्वालामुखी के रूप मे 1875 मे फुटा था और लावा रूपी भगत सिंह, आजाद, सुभाष ने क्रान्तीरूपी चिंगारी आग मे परिवर्तन कर के दिखाया, समुद्र विभाजित है एक आतंकवाद को मिटाअने के लिए हमें तुफान रूपी जोश की आवश्यकता "चट्टान को तोडकर जब पानी की धारा वह निकलती है" मानों की कलम योद्धाओं के हाथ मे तलवार की धार है आप को मान्यता देने के लिए सभी इकठ्ठे हो चुके है, युवाओं के द्वारा ही हर क्रान्ती का आगाज होता है। वह फ्रांसी हो जर्मनी, इटली या स्पेन चीन की क्रान्ती हो युवाओं के जोश के आगे नतमस्तक हो चुके हैं। आज परमपराओं से बढकर किसी व्यक्ती की कीर्ति का कोई अन्य साधन नही हो सकता, महानता की निशानी जब इन परम्पराओं पर होती है तो वे उस व्यक्ती की पूजा प्रशंसा का विषय बना देती है। आज यदि नेताओं मे प्राक्रम की कमी न होती अनुयायियों में उस की कमी नहीं, ये अपनी शक्ती आपसी झगडों मे व्यर्थ कर देते है इसी कारण किसी भी नेता ने ऐसा पराक्रम और कौशल अभी तक नहीं दिखाया।
खुन अपना हो या पराया, बम घरों पे गिरे या सरहदों पे,
इन्हें तामीर जख्म खाती है, खेत अपना जले या गैरों के जिन्दगी फांकों से तिलमिलाती है।
अब बिगुल बोल उठा है (गुरु जी कि कलम से )
साबधान.............!
कि अब बिगुल बोल उठा है ,
फुट पड़ी है ....
क्रांति की चिंगारी ,
समय के साथ
बदलते हर सच के पीछे की कहानी
शब्द बनकर हर किसी के
जेहन में फैल जाने को तैयार है ,
क्योंकि शब्दों के मकड़जाल को
हम ला रहे है आपके पास ....,
लो उठो और सामना करो
हर रोज एक कड़वे सत्य की ..........
क्योंकि सत्य तो सत्य है ,
पर है बड़ा कडुआ.....................
कि अब बिगुल बोल उठा है ,
फुट पड़ी है ....
क्रांति की चिंगारी ,
समय के साथ
बदलते हर सच के पीछे की कहानी
शब्द बनकर हर किसी के
जेहन में फैल जाने को तैयार है ,
क्योंकि शब्दों के मकड़जाल को
हम ला रहे है आपके पास ....,
लो उठो और सामना करो
हर रोज एक कड़वे सत्य की ..........
क्योंकि सत्य तो सत्य है ,
पर है बड़ा कडुआ.....................
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