गुरुवार, 9 सितंबर 2010

प्रगतिशील का अर्थ

वह कभी नहीं होगा। प्रगतिशील किसी रुढ़ि को नहीं लाना चाहेगा। प्रगतिशील का अर्थ ही यही है कि हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जहां हम किसी को रुढ़ि में नहीं बांधेंगे। आप पूछ सकते हैं फिर समाज कैसे चलेगा ? समाज बिना रुढ़ियों के चल सकता है और सभी नियम रुढ़ियां नहीं होतीं। जिन नियमों को हम भावावेश से पकड़ते हैं वे रुढ़ियां हो जाती हैं। जैसे उदाहरण के लिए-यह रास्ते का नियम है कि आप बाएं चलिए। किन्हीं मुल्को में रास्ते का नियम है कि दाएं चलिए। यह कोई रुढ़ि नहीं है। यह सिर्फ फार्मल व्यवस्था है।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप बाएं चलते हैं कि दाएं चलते हैं। एक व्यवस्था बना ली है कि बाएं चलिए। उससे चलने वालों को सुविधा होती है। लेकिन बाएं चलना कोई वेद वाक्य नहीं है और बाएं चलने की तख्ती लगाकर पूजा करने की कोई ज़रुरत नहीं है। और बाएं चलने के नियम को किसी दिन बदलना पड़े तो हम सोचें कि दाएं चलने का नियम बना लें तो किसी को यह झण्डा लेकर चलने की ज़्ारुरत नहीं कि हमारे धर्म पर हमला हो गया। जिस दिन दुनिया में प्रगतिशीलता होगी उस दिन नियम तो होंगे, रुढ़ियां नहीं होंगीं। रुढ़ि और नियम में फ़र्क़ है। जब किसी नियम को हम पागल की तरह पकड़ लेते हैं तब वह रुढ़ि बन जाती है। नियमहीन समाज नहीं हो सकता है, रुढ़िहीन समाज हो सकता है

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