किसी भी आंदोलन को सफल बनाने के लिए कुर्बानी देनी पड़ती है। सदियो से आंदोलन व क्रांतियों में युवाओ कि अहम भुमिका रही है, चाहे उतराखंड आंदोलन में अलग राज्य के लिए युवाओ की महत्वपूर्ण भुमिका या राजनीति मे भुचाल लाने वाले जे.पी आंदोलन जो युवाओ के दम पर सफल रहा। अब फिर युवाओ के दौड़ते लहू ने उबाल मारा है, तेलंगाना के लिए युवा छात्र आंदोलन में कूद पड़े, अगर युवा सड़को पर उतर आए तो सरकारो को झुकना ही पड़ता है।
अब आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका तेलंगाना आंदोलनकारीयो को इंतजार था।
टी.आर.एस के अध्यक्ष चंद्रषेखर का ग्याराह दिन तक आमरण अंषन चला, भारी दबाव के बाद केंद्र सरकार झुक गई और ग्रहमंत्री ने अलग राज्य के गठन कि कार्यवाही शुरू कर दी है।
परंतू इसी के साथ आंध्रा में कांग्रेस मे टूट के आसार साफ दिखई दे रहें है, अबतक 130 विधायक और 13 सांसदो ने इस्तीफा दे दिया, यदी इसे मंजूर कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार पर संवैधानिक संकट मंडराने लगेगा।
तेलंगाना के बाद अलग राज्य बनाने की होड़ सी लग गई है, बरसो से सुलगती नए राज्यो की मांग जोर पकड़ने लगी है। उत्तरप्रदे्श की मुख्यमंत्री मायावती ने उ.प्र को चार भागो में जैसे की हरितप्रदेश, बुंदेलखंड व पुर्वांचल के रूप में बाटने कि मांग केंद्र से कर डाली है, तथा पष्चिम बंगाल गोरखालैंड की मांग कर रहे जी.जे.एम के अध्यक्ष विमल गुरू भी आमरण अंशन पर बैठ गए हैं और इन्ही कि भाती सौराश्ट्र गुजरात से और मिथलांचल व भोजपुर को बिहार से अलग राज्य बनाने कि मांग ने भी जोर पकड़ लिया हैं।
बड़े राज्य होने के कारण दूर दराज के क्षेत्रो तक सरकारे विकास कार्य कराने में नाकाम रहीं हैं।
क्यो की ना तो वहाॅ शिक्षा, स्वासथय व रोजगार से जुड़ी कोई भी समस्या का हल नहीं हो पाया है जिसके कारणव्श युवा रोजी रोटी का जुगाड़ करने के लिए तेजी से शहर की तरफ पलायन कर रहें है। वही शहर भी भड़ती जंसख्या के कारणवश बिजली, पानी व रहने के लिए जमीन का न होना जैसी परेशानियो से जूझ रहें हैं।
नए राज्यो को बनाना एक कठिन डगर तो जरूर है लेकिन इस कठिन डगर को आसान नही बनाया गया और राजनीति के चलते इस डगर को और आयाम दीया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहावत अब पशताव होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत फिट बैठजाएगी।
मुरार सिंह कंडारी
अब आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका तेलंगाना आंदोलनकारीयो को इंतजार था।
टी.आर.एस के अध्यक्ष चंद्रषेखर का ग्याराह दिन तक आमरण अंषन चला, भारी दबाव के बाद केंद्र सरकार झुक गई और ग्रहमंत्री ने अलग राज्य के गठन कि कार्यवाही शुरू कर दी है।
परंतू इसी के साथ आंध्रा में कांग्रेस मे टूट के आसार साफ दिखई दे रहें है, अबतक 130 विधायक और 13 सांसदो ने इस्तीफा दे दिया, यदी इसे मंजूर कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार पर संवैधानिक संकट मंडराने लगेगा।
तेलंगाना के बाद अलग राज्य बनाने की होड़ सी लग गई है, बरसो से सुलगती नए राज्यो की मांग जोर पकड़ने लगी है। उत्तरप्रदे्श की मुख्यमंत्री मायावती ने उ.प्र को चार भागो में जैसे की हरितप्रदेश, बुंदेलखंड व पुर्वांचल के रूप में बाटने कि मांग केंद्र से कर डाली है, तथा पष्चिम बंगाल गोरखालैंड की मांग कर रहे जी.जे.एम के अध्यक्ष विमल गुरू भी आमरण अंशन पर बैठ गए हैं और इन्ही कि भाती सौराश्ट्र गुजरात से और मिथलांचल व भोजपुर को बिहार से अलग राज्य बनाने कि मांग ने भी जोर पकड़ लिया हैं।
बड़े राज्य होने के कारण दूर दराज के क्षेत्रो तक सरकारे विकास कार्य कराने में नाकाम रहीं हैं।
क्यो की ना तो वहाॅ शिक्षा, स्वासथय व रोजगार से जुड़ी कोई भी समस्या का हल नहीं हो पाया है जिसके कारणव्श युवा रोजी रोटी का जुगाड़ करने के लिए तेजी से शहर की तरफ पलायन कर रहें है। वही शहर भी भड़ती जंसख्या के कारणवश बिजली, पानी व रहने के लिए जमीन का न होना जैसी परेशानियो से जूझ रहें हैं।
नए राज्यो को बनाना एक कठिन डगर तो जरूर है लेकिन इस कठिन डगर को आसान नही बनाया गया और राजनीति के चलते इस डगर को और आयाम दीया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहावत अब पशताव होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत फिट बैठजाएगी।
मुरार सिंह कंडारी
to kya chote chote naye rajyo ka uday hi vikas
जवाब देंहटाएंkhlata hai
subodh ji mai aapki baat se sahmat hu...
जवाब देंहटाएंnice
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