भोगतंत्र से तिकड़म तंत्र
संसदीय शासन के तौर तरीके व्यक्तिगत सत्ता के स्थान पर बहुमत को सिद्ध करने के सिद्धांत पर टिका है, यहाँ सभी सत्ता पक्ष व विपक्ष बहुमत को सिद्ध करने में सभी साम, दाम, दण्ड, वेद का इस्तेमाल कर विरोधियों को धन के बल पर बाहुबल से बहुमत के निर्णय को अपने पक्ष में कर देता है। सवा अरब की आबादी वाले मुल्क में वास करने वाली भेड़ों (जनता) को कुछ मुठ्ठी भर गडरीया हाक रहे हैं। मानव समुदाय को प्राकृति की महत्वपूर्ण और अनुपम देन है। यह समझना बेवकूफी होगी कि गडरियों की संख्या केवल पाँच दस हजार लोगों जनता सवा अरब भेड़ रूपी भारतीय जनमानस को हाक रहे है वे चाहे इन भेड़ों को बकरों से लडायें क्योंकि अगर इन दोनों में लड़ते हुए कोई एक मर गया तो इनकी चाँदी हो जाएगी और दोनो मर गए तो सोने पर सुहागा। राजनीति की इस उठा पटक के परिणामों के रुप में सामने आते हैं तो केवल शासक वर्ग का गिरा हुआ वैदिक स्तर इन सब परिस्थितियों से राष्ट्र और राज्य की दुर्दशा पर कितना कष्ट होता है। इसका आंकलन नहीं किया जा सकता है इस कटु सच का विरोध केवल एक धूंर्त राजनितज्ञ ही कर सकता है। क्या सरकार के नेताओं को किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? गवर्नल, मंत्रियों की इच्छाओं और आदेशों के परिणामों के लिए दोषी कौन होगा ? किसी बुद्धिमान नेता का कार्य रचनात्मक विचारों तथा लोकहितकारी योजनाओं को मूर्त रूप देना है या धूर्त और उजड़ व जनप्रतिनिधियों को संसद में पहुँचाना। जो केवल मंत्री पद और नोट के लिए चापलूसी करते है। प्रतिभाशाली व्यक्तियों के कार्यों में हमेशा जन साधारण की निष्क्रियता बाधक बनती रही है इस बाधा को दूर करने के लिए उसके पास तीन विकल्प है एक तो इन मूर्खों, भेड़ों के (झुण्ड) भीड़ को खरीद ले दूसरा राष्ट्र जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने का विरोध करें। तिसरी राजनैती से सन्यास ले लो। ऐसी परिस्थितियों में ईमानदार नेता को राजनीतिक विवशता होती है। वहीं दूसरी और उसकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा । सच्चे राष्ट्र भक्त और ईमानदार नेता को राजनीतिक ठेकेदारी के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। हर नेता को राजनीति का खेल खेलने की खुजली होती है परन्तु यह सरकारें विकास को पूर्ण रूप से रोक लेते हैं। राजनीतिक ठेकेदार जितना अधिक संकुचित द्रृष्टकोण वाला और बुद्धिमान होगा उसकी राजनैतिक जानकारी उतनी ही सही होगी वह इस व्यवस्था को बहुत पसन्द करता है क्योंकि इसमें रचनात्मक प्रतिभा की कोई आवश्यकता नहीं होती, न ही श्रेष्ठतम गुणों की। इस गन्दी राजनीति का कड़वा सच है कि यहाँ सत्ताधारियों को निजी योग्यता जितनी घटती है इन नेताओं की कीर्ति उतनी ही बढ़ती है राजनेता व्यक्तिगत रूप से संसदीय बहुमत पर जितना अधिक निर्भर होगा उसकी भौतिक प्रतिभा और कार्य करने की क्षमता कम होगी। राजनीतिक चालबाज जो भी काम करते हैं जनता की स्वीकृति पाने के लिए कई प्रकार की चाले चलते हैं, हमेशा अपनी जिम्मेदारी दूसरे नेता के कंधो पर डालने के लिए योग्य साथियों की तलाश करते रहते है। जो वक्त आने पर उनके काम आ सके यह परम सच है कि व्यक्ति विशेष का स्थान बहुमत नहीं हो सकता। एक बुद्धिमान व धैर्यवान व्यक्ति जिसे कुशलता से किसी कार्य को पूर्ण करता है। उसी प्रकार एक योग्य प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जिसे कुशलता से शासन की बागडोर सम्भालना है और लोक कल्याण के कार्य करता है। चुने गए सैकडों मूर्ख प्रतिनिधि मिलकर भी वह कार्य नहीं कर सकते। नेता बहुत ही उतावले और महत्वकांक्षी होते हैं उनको अपनी बारी का इंतजार करने तक का सब्र नहीं होता। वह लम्बी लाईन में खडे नहीं होना चाहते है बल्कि पद पाने के लिए उससे जुड़ें हुए हर परिवर्तन का गहन अध्ययन करते है। श्रेष्ठ नेता के गुणों की जानकारी मिलते ही उसके खिलाफ मोर्चा संगठित किया जाता है परिणाम स्वरूप या तो वह नेता खुद ही सत्ता और वपद को त्याग देता है "या फिर तथाकथित यशस्वी उल्लुओं की टोली में शामिल होकर उन्ही की बोली बोलने लगता है"। सार्वजनिक हित के नाम पर नहीं छोड़ना या फिर वे उसे निकाल बाहर नहीं करते पद छोड़ने वाला व्यक्ति जानता है कि उसे दुबारा यह पद आसानी से नहीं मिलने वाला है इसलिए आसानी से नहीं छोड़ता बल्कि उसे पद छोड़ने के लिए विवश किया जाता है ऐसे नेता बार-बार उस पद को पाने की इच्छा लिए लाईन में खडे इंतजार करते है हर संभव प्रयास करते रहते है। और तब तक करते रहते हैं, जब तक महत्त्वाकांक्षी नेता अपनी ताकत से उन्हें पार्टी से बाहर नहीं करते । मंत्रियों के पदों के लिए होने वाले तोल-मोल और सौदेबाजी भारतीय लोकतंत्र के खोखलेपन को साफ उजागर करता है एक नेता से पद छीनकर दूसरे नेता को मंत्री पद से नवाजना यह क्रम धीरे-धीरे घटता जाता है हर परिवर्तन के साथ राजनेता का स्तर भी गिरता चला जाता है। अंत में वह न घर का रहता है और न घाट का केवल तुच्छ प्रवृति के राजनीतिक दलाल ही शासन कर रहे है ऐसे नेता केवल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए हर रोज नये सौदेबाजी करते है नये गठबंधन करते है और जोड़-तोड़ करते रहते है कभी उनको कुत्ते कहते है तो कभी उनके तलवे चाटते नजर आते है।
सवा अरब की आबादी वाले मुल्क में वास करने वाली भेड़ों (जनता) को कुछ मुठ्ठी भर गडरीया हाक रहे हैं। यही सच है. और यह भीड़-भेड़ बेक्वूफ़ भरा एक नज़ारा है, जहां समय-समय पर विस्फोट होते रहते हैं. जन जागरूकता एक सुन्दर सुबह का साकेत हो सकती है...यह आनी ही चाहिए.
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आपके बहुत बहुत सुन्दर तरीके से अपनी बातों को रखा. बहुत उम्दा. जारी रहें. शुभकामनायें.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
अच्छा लिखते हैं. स्वागत है आपका. कृपया आलेख के बीच में पैर दें तो पठनीयता बनेगी.
जवाब देंहटाएं- सुलभ सतरंगी(यादों का इन्द्रजाल...)
*Paragraph
जवाब देंहटाएंsamajik jagrukata ka swagat.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया. स्वागत है
जवाब देंहटाएंJagruk hona hoga sabhi ko,varna patan ka ant nahi.Badhiya aalekh.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार
व्यक्त करें
narayan narayan
जवाब देंहटाएंexcellent murar.
जवाब देंहटाएंHow much expressive way you have written about this?
nikhil