tag:blogger.com,1999:blog-25724572073520785232024-03-08T12:34:13.817-08:00bigulgarjanmurarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-20685912561843076552011-04-05T05:45:00.000-07:002011-04-05T05:45:08.490-07:00Boondh A Drop of Jal - Love Sparks Chalte Chalte - Official<iframe src="http://www.youtube.com/embed/kXA_GnORX5s?fs=1" allowfullscreen="" width="425" frameborder="0" height="344"></iframe>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-19835209974746858332011-04-05T05:21:00.000-07:002011-04-05T05:21:01.060-07:00JAL THE BAND .KASH YEH PAL.(new track)<iframe src="http://www.youtube.com/embed/WLKPf2qP3tc?fs=1" allowfullscreen="" width="425" frameborder="0" height="344"></iframe>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-54108224517843750562011-04-05T05:10:00.000-07:002011-04-05T05:10:19.452-07:00best indian video ever!!<iframe src="http://www.youtube.com/embed/_cN6F6ztceA?fs=1" allowfullscreen="" width="425" frameborder="0" height="344"></iframe>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-84185781722129437582011-04-05T05:07:00.000-07:002011-04-05T05:07:45.277-07:00Gujarati: Introduction to HIV and AIDS<iframe src="http://www.youtube.com/embed/bECLvK3MuNU?fs=1" allowfullscreen="" width="425" frameborder="0" height="344"></iframe>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-80318964982692475982011-04-05T05:06:00.000-07:002011-04-05T05:06:19.130-07:00HIV among drug addicts increasing: Study<iframe src="http://www.youtube.com/embed/TomrrEZkcuQ?fs=1" allowfullscreen="" width="425" frameborder="0" height="344"></iframe>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-3995461583586363842011-01-25T05:28:00.000-08:002011-01-25T05:28:01.184-08:00पुण्य प्रसून बाजपेयी: कॉरपोरेट, सियासत और मनमोहन मंत्रिमंडल<a href="http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2011/01/blog-post_25.html#links">पुण्य प्रसून बाजपेयी: कॉरपोरेट, सियासत और मनमोहन मंत्रिमंडल</a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-26700409799165042472010-11-22T00:02:00.003-08:002010-11-22T00:08:22.465-08:00" क्यों भटक रहा हे आज का युवा "<h3 class="post-title entry-title"> <a href="http://pahalamilestone.blogspot.com/2010/11/blog-post_20.html">" क्यों भटक रहा हे आज का युवा "</a> </h3> <div class="post-header"> </div> <div style="color: rgb(153, 153, 255);" class="post-body entry-content"> <span style="color: rgb(51, 51, 255);">आज युवा के कन्धों पर हम अपने देश के कल को देखते हें लेकिन क्या इस सदी का युवा सही मायने हमारे कल की पहचान को काबिज रख पाएगा! इस पर शायद मेरे जैसे कई लोगों के अलग अलग मत हो सकते हों ! युवाओं में आज जिस तरह से आगे बढ़ने की एक अजीब सी ललक देखने को मिल रही हे वो देखते ही बनती हे और वो काबिले तारीफ भी हे जिसका में हमेशा समर्थक रहा हूँ ! आजकी तेज दोड़ती जिंदगी में शायद हम लोग अपने बच्चों को कहीं भुला बैठें हें ! शायद हम </span><span style="color: rgb(51, 51, 255);">अपनी</span><span style="color: rgb(51, 51, 255);"> तहजीब , संस्कृति व संस्कार को कुछ इस कदर भुला चुकें हें की हमें अपने बड़ों व छोटों से किस तरह से पेश आना हे इसकी तो परिभाषा ही बदल चुके हें ! अब इसके पीछे हम लोग किसको जिमेदार समझे क्या आज की तेज दौड़ती जिंदगी या वे लोग जो अपने परिवार के लिए कुछ सुख के पल भी नहीं निकाल पा रहें हें ? जिनको हमेशा ये ख्याल तो हे की आज कही शेयर बाज़ार नीचे तो नहीं चला गया मेरा लाखों का नुक्सान न हो जाए ! आखिर हम लोग ऐसे आराम का क्या करेंगे जिसके कारन हमें अपनों को ही खो देना पड़े ! जी हाँ ! मेरे कहने का सीधा मतलब ये हे की हम अपनों को खुद से दूर करने के लिए खुद जिमेदार हें ! अब हम अगर अपनों से दूर हो जाएगें तो इसका केसे पता चल पाएगा की हमारे बचे सही दिशा की और जा रहा हे या नहीं कियोंकि हमे तो अपने ऑफिस और अपने घाटे व मुनाफे की अधिक चिंता हे न की अपने बच्चों व परिवार की ! अब हम लोग इस तेजी से कहाँ जाना चाहतें हें , क्या हासील करना चाहतें हें इसका शायद ही कोई जवाव दे सके ! हम भारतवासी हें और हम सभी अपने और अपने परिवार की भलाई के लिए ही महनत करतें हें ! मेरे इस ब्लॉग का शीर्षक हे की " क्यों भटक रहा हे आज का युवा " जी हाँ ! आज का युवा भटक ही नहीं बल्की गुमराह भी हो रहा हे जिसके उपरोक्त सभी कारणों को में जिम्मेदार समझता हूँ ! अब देश जहाँ एक और विश्व स्तर पर अपनी पहचान कायम कर रहा हे वहीं मुझे आज के युवा की सोच पर बड़ी चिंता होती हे ! हम लोग आज भी अपनी कुछ खास बुराइओं को नहीं छोड़ पा रहे हें ! हम लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने में कही न कहीं चूक रहें हें ! जिसका परिणाम आज हमारे सामने हे आज न केवल बेरोजगार युवा बल्कि रोजगार प्राप्त युवा भी शराब ,चरस व इस तरह के कई हानिकारक नशों का आदि बनता जा रहा हे ! अब इस युवा पर किस तरह से भरोसा किया जाये की वो कल हमारी और देश की रक्षा कर पायेगा ? देश प्रगति की अपनी चरम सीमा की और बढ़ रहा हे और आज का युवा जो की बिना नशे के न रह सकता हो उस युवा से आप और हम केसी उम्मीद करें की वो किस देश की कल्पना ले कर चल रहा हे ! इस नशे के कारन वो अपनी हर हदों को लांग जाते हें ! अब आज कल के युवाओं में एक नया ही ट्रेंड अपना लिया हे नशे की धुन पर सवार होकर वे लोग अपने छोटे व बढे सभी को अपनी बोतल की तरह से देखने लागतें हें ! और अगर किसी नम्बर उनके पास हो तो फिर तो वो उसको आधी रात में ही कॉल कर लेतें हें अगर सामने वाला उसे समझा भी रहा हे की ये उसके लिए अच्चा न होगा लेकिन भाई इस समय तो वो ही सबका अकेला मालिक हे जी वो किसी की भला क्यों सुननें वाला हे इसका भुक्तान उसको कई बार तो अगले समझदार की बजह छोटी मोती माफी से ही चल जाता हे और कई बार बात ज्यादा बढ़ जाने पर नुकसान का कारन भी बन जाती हे ! तो क्या हम लोग अपने देश की इस युवा पीढ़ी से ये सब ही चाहतें हे या फिर देश का ये युवा आगे आकर कुच्छ ऐसा करे जिस न केवल उसके माँ बाप को ही नहीं पुरे देश को नाज हो !</span><br /><br />इस ब्लॉग में मैं आप सभी के विचार चाहता हूँ !<br /><br />एस एस नेगी </div> <span class="post-author vcard"> Posted by <span class="fn">Pahal A milestone</span> </span><span class="post-timestamp"> </span>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-27197631165304170822010-11-17T05:26:00.000-08:002010-11-17T05:30:32.811-08:00"पहल अ माइलस्टोन"<span style="color: rgb(51, 102, 255); font-weight: bold;"></span> <span style="color: rgb(51, 102, 255);">हिन्दी</span><span style="color: rgb(51, 102, 255);"> मासिक पत्रिका आप सोच रहे होंगे कि पत्रिकाओं के समुद्र में एक और पत्रिका आपके सम्मुख आ रही है। आपका ऐसा सोचना ग़लत भी नहीं, क्योंकि आए दिन कोई नई पत्रिका लेकर आपके सामने आ जाता है, और आपसे कहता है कि हम नई विचारधारा के साथ आए हैं, हममे कुछ ऐसा है जो आपको चकाचौंध कर देगा। और न जाने कितनी अच्छी बातों से आपका सरोकार कराया जाता है, जो आगे चलकर केवल बातें ही रह जाती हैं। एक मशहूर गीतकार के एक गीत के चंद बोल "कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब, वादे हैं वादों का क्या" के अस्तित्व को साकार करते इन बातों और वादों का दौर दोबारा आप तक नहीं पहुंचता। कई पत्रिकाएं व्यापार में लिप्त होकर अपना कर्तव्य भूल जाती हैं, तो कई रेवेन्यू जनरेट न कर पाने के कारण रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर के दफ्तर की किसी फ़ाइल में पंजीकृत मात्र रह जाती हैं। हमें भी आपसे कुछ ऐसे ही वादे करने चाहिए, लेकिन हम कुछ बोलने के बजाय कुछ करने में विश्वास रखते हैं। कहने के लिए बातों और वादों की हमारे पास भी कमी नहीं, हम भी यह बढ़ चढ़ कर कहना चाहते हैं कि हम क्रांति की नई ज्योत जलाएंगे, युवाओं को पहल करने का मौका देंगे, युवाओं को देश का भविष्य बनाएंगे। लेकिन हम ऐसा कोई वादा नहीं कर रहे, क्योंकि हमें पता है आज का युवा आंकड़ों पर विश्वास रखता है, और हम युवाओं के बीच आंकड़ों की इस ललक को जीवित रखने का उद्देश्य रखते हैं। हम आज के युवा हैं, हम आज के युवा की आवाज़ हैं, हम युवा के साथ हैं, युवाओं की विचारधारा से प्रेरित हैं। "पहल- अ माइलस्टोन" के आगमन के साथ कुछ विशेष तथ्य जुड़े हैं। आज हमारे देश की राजनीति में कुछ युवा नेता अपनी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं, या कह सकते हैं कि अब युवाओं को राजनीति में अपना भविष्य दिखने लगा है, और वे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह हमारे देश की वृद्ध होती राजनीति को नव जीवन मिलने जैसा है। बुजुर्ग नेताओं के कंधे पर सवार होकर राजनीति के लिए पथ बदलना उतना आसान नहीं था जितना युवा नेताओं के साहसी और निर्भय कंधों पर सवार होकर हो सकता है. युवाओं की इस पहल से प्रेरित होकर हमने अपनी पत्रिका का नाम "पहल" रखने के बारे में विचार किया। परंतु हम आज के युवा की आवाज़ बनने की लालसा रखते हैं इसलिए हमें यह नाम पर्याप्त नहीं लग रहा था। फ़िर हमारा ध्यान आज के प्रचलित ट्रेंड के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए, एक बेस लाइन बनाने पर गया। और इस तरह "पहल" को "पहल - अ माइलस्टोन" के रूप में एक नया और अर्थपूर्ण नाम मिला। "अ माइलस्टोन", इसलिए क्योंकि प्रत्येक पहल एक मील का पत्थर बन जाती है। अर्थात पहल कभी व्यर्थ नहीं जाती। इतिहास इस वक्तव्य का साक्षी रहा है, सन 1857 में, मंगल पांडे ने जिस क्रांति की पहल की उसी क्रांति के परिणाम स्वरूप आज हम आजाद देश की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, लेकिन सभी के बारे में कहना उचित नहीं होगा। बहरहाल, इतिहास अपनी जगह है, और भविष्य की अपनी राह है। हम आने वाले भविष्य के लिए काम करने के उत्सुक है। इसी उत्सुकत के कारण हम यह पत्रिका लेकर आपके सामने आए हैं। हम यह नहीं कहते कि कोई पहल करने के लिए आप इस पत्रिका को पढ़िए, हम तो यह चाहते हैं कि कोई पहल करने के बाद आप हमें बताएं, जिसे हम अपनी पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित कर सकें। हम अपनी ओर से एक पहल करने का प्रयास कर रहे हैं, और आपसे इस पहल का हिस्सा बनने का निवेदन।" </span><br /> <br /><span style="color: rgb(51, 102, 255);"> मुरार सिंह </span><span style="color: rgb(51, 102, 255);">कंडारी</span><span style="color: rgb(51, 102, 255);"> न्यू दिल्ली </span><div style="color: rgb(51, 102, 255);" id=":ut"><wbr> <wbr> <wbr> <br /> -----<a href="http://www.google.com/friendconnect" target="_blank">http://www.google.com/<wbr>friendconnect</a></div>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-29538360054121441872010-11-16T00:13:00.000-08:002010-11-16T00:13:28.536-08:00पुण्य प्रसून बाजपेयी: मस्त लोगों के मरे हुये मन<a href="http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2008/11/blog-post_16.html">पुण्य प्रसून बाजपेयी: मस्त लोगों के मरे हुये मन</a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-19103187765521426302010-10-14T09:10:00.000-07:002010-10-14T09:10:03.297-07:00murar recharge<object style="background-image: url("http://i3.ytimg.com/vi/VmHNYgPJ1XI/hqdefault.jpg");" width="480" height="295"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/VmHNYgPJ1XI?fs=1&hl=en_US"><param name="allowFullScreen" value="true"><param name="allowscriptaccess" value="always"><embed src="http://www.youtube.com/v/VmHNYgPJ1XI?fs=1&hl=en_US" allowscriptaccess="never" allowfullscreen="true" wmode="transparent" type="application/x-shockwave-flash" width="480" height="295"></embed></object>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-37819225522432478452010-09-21T08:37:00.000-07:002010-09-21T08:37:19.426-07:00पुण्य प्रसून बाजपेयी: पारिवारिक लोकतंत्र का अलिखित संविधान<a href="http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2010/09/blog-post_13.html">पुण्य प्रसून बाजपेयी: पारिवारिक लोकतंत्र का अलिखित संविधान</a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-47567297863030909162010-09-13T23:14:00.000-07:002010-09-13T23:14:41.776-07:00लो क सं घ र्ष !: विशेष साक्षात्कार: पूंजीवादी व्यवस्था बेहद चालाक है: अजीज पाशा, भाग 1<a href="http://loksangharsha.blogspot.com/2010/09/1_13.html">लो क सं घ र्ष !: विशेष साक्षात्कार: पूंजीवादी व्यवस्था बेहद चालाक है: अजीज पाशा, भाग 1</a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-538063502627414842010-09-09T05:58:00.000-07:002010-09-09T05:59:14.482-07:00प्रगतिशील का अर्थ<strong><span style="color: rgb(153, 51, 0);">वह कभी नहीं होगा। प्रगतिशील किसी रुढ़ि को नहीं लाना चाहेगा। प्रगतिशील का अर्थ ही यही है कि हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जहां हम किसी को रुढ़ि में नहीं बांधेंगे। आप पूछ सकते हैं फिर समाज कैसे चलेगा ? समाज बिना रुढ़ियों के चल सकता है और सभी नियम रुढ़ियां नहीं होतीं। जिन नियमों को हम भावावेश से पकड़ते हैं वे रुढ़ियां हो जाती हैं। जैसे उदाहरण के लिए-यह रास्ते का नियम है कि आप बाएं चलिए। किन्हीं मुल्को में रास्ते का नियम है कि दाएं चलिए। यह कोई रुढ़ि नहीं है। यह सिर्फ फार्मल व्यवस्था है।</span></strong><br /><strong><span style="color: rgb(153, 51, 0);">इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप बाएं चलते हैं कि दाएं चलते हैं। एक व्यवस्था बना ली है कि बाएं चलिए। उससे चलने वालों को सुविधा होती है। लेकिन बाएं चलना कोई वेद वाक्य नहीं है और बाएं चलने की तख्ती लगाकर पूजा करने की कोई ज़रुरत नहीं है। और बाएं चलने के नियम को किसी दिन बदलना पड़े तो हम सोचें कि दाएं चलने का नियम बना लें तो किसी को यह झण्डा लेकर चलने की ज़्ारुरत नहीं कि हमारे धर्म पर हमला हो गया। जिस दिन दुनिया में प्रगतिशीलता होगी उस दिन नियम तो होंगे, रुढ़ियां नहीं होंगीं। रुढ़ि और नियम में फ़र्क़ है। जब किसी नियम को हम पागल की तरह पकड़ लेते हैं तब वह रुढ़ि बन जाती है। नियमहीन समाज नहीं हो सकता है, रुढ़िहीन समाज हो सकता है</span></strong>।murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-14013687919826887012010-09-07T09:24:00.000-07:002010-09-07T09:24:18.184-07:00भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी: 17वां विश्व युवा एवं छात्र उत्सव<a href="http://cpiup.blogspot.com/2010/08/17.html">भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी: 17वां विश्व युवा एवं छात्र उत्सव</a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-2777452252382875382010-08-22T07:57:00.000-07:002010-08-22T07:58:03.360-07:00मनोज बाजपेयी ब्लॉग: 'जुगाड़' से बेहाल<a href="http://manojbajpayee.itzmyblog.com/2009/01/blog-post_11.html">मनोज बाजपेयी ब्लॉग: 'जुगाड़' से बेहाल</a><br />aap ko nhe lagtta ki.............india,n poli bhe jugada hi ha??murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-79430333266552001202010-03-11T07:06:00.000-08:002010-03-11T07:07:17.385-08:00Think of the great democracy we have…<div>An Important Issue!<br /><br />Salary & Govt. Concessions for a <span style="border-bottom: 1px dashed rgb(0, 102, 204);">Member of Parliament</span> (MP)<br /><br />Monthly Salary : Rs. 12,000/-<br /><br />Expense for <span>Constitution</span> per month : Rs. 10,000/-<br /><br />Office expenditure per month : Rs. 14,000/-<br /><br />Traveling concession (Rs. 8 per km) : Rs. 48,000/-<br /><br />(eg. For a visit from <span style="border-bottom: 1px dashed rgb(0, 102, 204);">South India</span> to <span style="border-bottom: 1px dashed rgb(0, 102, 204);">Delhi</span> & return : 6000 km)<br /><br />Daily DA TA during parliament meets : Rs. 500/day<br /><br />Charge for 1 class (A/C) in train : Free (For any number of times)<br />(All over <span>India</span> )<br /><br />Charge for Business Class in flights : Free for 40 trips / year (With<br />wife or P.A.)<br /><br />Rent for MP hostel at Delhi : Free.<br /><br />Electricity costs at home : Free up to 50,000 units.<br /><br />Local phone call charge : Free up to 1, 70,000 calls..<br /><br />TOTAL expense for a MP [having no qualification] per year : Rs.32, 00,000/-<br /><br /><br />[i.e. 2.66 lakh/month]<br />TOTAL expense for 5 years : Rs. 1, 60, 00,000/-<br /><br /><br /><br />For 534 MPs, the expense for 5 years :Rs. 8,54,40,00,000/- (Nearly 855 crores)<br /><br />This is how all our tax money is been swallowed and <span>price hike</span> on our<br />regular commodities.........<br />And this is the present condition of our country :<br /><br />855 crores could make their lives livable!!<br />Think of the great democracy we have…<br /> </div>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-54892252945163348312010-01-07T02:17:00.000-08:002010-01-07T02:20:50.445-08:00नए रजिओ की कठिन डगर<a href="http://www.pisuindia.com/ReadNews.aspx?NType=BBol&myID=51#" class="boxdtl"><span id="TB_NNews_dtl"><div style="text-align: justify;">किसी भी आंदोलन को सफल बनाने के लिए कुर्बानी देनी पड़ती है। सदियो से आंदोलन व क्रांतियों में युवाओ कि अहम भुमिका रही है, चाहे उतराखंड आंदोलन में अलग राज्य के लिए युवाओ की महत्वपूर्ण भुमिका या राजनीति मे भुचाल लाने वाले जे.पी आंदोलन जो युवाओ के दम पर सफल रहा। अब फिर युवाओ के दौड़ते लहू ने उबाल मारा है, तेलंगाना के लिए युवा छात्र आंदोलन में कूद पड़े, अगर युवा सड़को पर उतर आए तो सरकारो को झुकना ही पड़ता है।<br />अब आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका तेलंगाना आंदोलनकारीयो को इंतजार था। <br />टी.आर.एस के अध्यक्ष चंद्रषेखर का ग्याराह दिन तक आमरण अंषन चला, भारी दबाव के बाद केंद्र सरकार झुक गई और ग्रहमंत्री ने अलग राज्य के गठन कि कार्यवाही शुरू कर दी है।<br /> परंतू इसी के साथ आंध्रा में कांग्रेस मे टूट के आसार साफ दिखई दे रहें है, अबतक 130 विधायक और 13 सांसदो ने इस्तीफा दे दिया, यदी इसे मंजूर कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार पर संवैधानिक संकट मंडराने लगेगा।<br /> तेलंगाना के बाद अलग राज्य बनाने की होड़ सी लग गई है, बरसो से सुलगती नए राज्यो की मांग जोर पकड़ने लगी है। उत्तरप्रदे्श की मुख्यमंत्री मायावती ने उ.प्र को चार भागो में जैसे की हरितप्रदेश, बुंदेलखंड व पुर्वांचल के रूप में बाटने कि मांग केंद्र से कर डाली है, तथा पष्चिम बंगाल गोरखालैंड की मांग कर रहे जी.जे.एम के अध्यक्ष विमल गुरू भी आमरण अंशन पर बैठ गए हैं और इन्ही कि भाती सौराश्ट्र गुजरात से और मिथलांचल व भोजपुर को बिहार से अलग राज्य बनाने कि मांग ने भी जोर पकड़ लिया हैं।<br />बड़े राज्य होने के कारण दूर दराज के क्षेत्रो तक सरकारे विकास कार्य कराने में नाकाम रहीं हैं। <br />क्यो की ना तो वहाॅ शिक्षा, स्वासथय व रोजगार से जुड़ी कोई भी समस्या का हल नहीं हो पाया है जिसके कारणव्श युवा रोजी रोटी का जुगाड़ करने के लिए तेजी से शहर की तरफ पलायन कर रहें है। वही शहर भी भड़ती जंसख्या के कारणवश बिजली, पानी व रहने के लिए जमीन का न होना जैसी परेशानियो से जूझ रहें हैं।<br />नए राज्यो को बनाना एक कठिन डगर तो जरूर है लेकिन इस कठिन डगर को आसान नही बनाया गया और राजनीति के चलते इस डगर को और आयाम दीया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह कहावत अब पशताव होत क्या जब चिड़ियां चुग गई खेत फिट बैठजाएगी।<br /><span style="font-weight: bold; text-decoration: underline;"> मुरार सिंह कंडारी </span></div></span></a>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-22603049403739610432010-01-02T00:59:00.000-08:002010-01-02T01:33:46.063-08:00महातमा की रहा पर तिवारीमहातमा की रहा पर तिवारी<br />चाहीय ३ कची कली क्वारी ,<br />रात को करते ह सवारी<br />काय <span>करे </span>कची <span>कली,</span><br />बआचारी माय <span>की </span><span>ह,</span><br />लाचारी ,<br /><span>महातमा </span>की रहा पर तिवारी<br />मुना के बाप <span>की<br /></span>ह सवारी, काम सूत्र की ह त्त्यारी नाम ह <span>तिवारी </span><span>कोओक </span>ससस्त्रmurarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-19001757213034698612009-11-27T05:28:00.001-08:002010-10-09T23:26:02.250-07:00दूषित पर्यावरण और विलुप्त होते वन्य जीव<span class="news_hd" style="padding-left: 10px;"> <a id="txt_lead" class="lead" style="display: inline-block; width: 600px;"><br /></a></span> <hr style="width: 620px;"> <!--News Content--> <span style="padding-left: 30px;" class="grd_lbl"></span><br /> <p style="text-align: justify;"> <a href="http://www.pisuindia.com/ReadNews.aspx?Ntype=PArti&myId=7#" class="boxdtl"><span id="TB_NNews_dtl"><p style="text-align: justify;">विश्व की सबसे बडी समस्या नवजाति की आदि काल के साथी जंगलों वनों की रियाली, वन्य प्राणियों को बचाने की है। आज प्रकृति को बेरहमी से दोहन किया जा रहा है। बदले में प्रकृति भी विनाश का तांडव रचकर मानव जाति को किए का नतीजा दे रही है। आज विश्व में प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति बिगडे पर्यावरण से उत्पन्न प्रदूषणों, जल, वायु आदि प्रदूषण से ग्रसित है। यदि प्रदूषित शहरों की बात की जाए तो भारतवर्ष के महानगर इसमें पहले स्थान पर हैं आदि काल से मानव जाति व घने जंगलों व नदी, नालों वन्य प्राणियों से जो सानिध्य रहा है वहीं सानिध्य आज भी बरकरार रहना चाहिए था। यही कडवा प्राकृतिक संतुलन का नियम है। विकास की अंधी दौड में हमने पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचायी है। औद्योगिक क्रांति के बाद फासिल इंधनों का जमकर उपयोग हुआ। इससे वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे है और समुद्र का जलस्तर तेजी से बढने लगा है। विश्वस्तर पर पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से निपटने के लिए तेजी से इंतजाम किया जा रहा है, लेकिन हम अभी इस मामले में काफी पीछे है। इसकी मुख्य वजह है जलवायु और भूमी को प्रदूषित करने में खतरनाक रसायनों के अलावा प्लास्टिक, तम्बाकू युक्त पदार्थ व बायो मैडिकल कचरा भी अहम भूमिका निभा रहा है। हमारे रोजमर्राह के प्रयोग में पोलीथीन का इस कदर प्रयोग होता है और जिसे लोक कचरे में फेंक देते हैं वह सडता नहीं है और नालियों में व खुले वातावरण में चारो तरफ फैले हुए मिलते है। पर्यावरण में चारों तरफ फैले हुए मिलते है। पर्यावरण प्रदूषण के आंकडों पर नजर डाले तो काफी भयावह तस्वीर उभर कर सामने आती है। वातावरण में छोडे जाने वाले लगभग 4000 रसायनों में से 43 खतरनाक कैंसर रोग का कारण बनते हैं दुनियाभर में 5 वर्ष तक की आयु के 2000 बच्चे हर साल दूषित पानी की वजह डायरिया के शिकार हो जाते है। ग्लोबल वार्मिंग की वज़ह से प्रति वर्ष 1,50,000 लोग अस्माक मौत के मुँह में समा जाते है। इसके अलावा हमारे द्वारा बहाया गया खतरनाक केमिकल और जहाजों से रिसने वाला तेज़ सैकडों जीवन जंतुओं की मौत का कारण बनता है। आज इस पर्यावरण हवास की वजह से ही विश्व में कहीं अनावृष्टि हो रही है तो कहीं पर अतिवृष्टि हो रही है कहीं पर भयंकर बाढ आ रही है तो कहीं भयंकर सूखा। वर्तमान में भारत का वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का 19 प्रतिशत ही वनाधीन है। बाकी हिस्सा या तो खेती के प्रयोग में हो रहा है या तो शहरी चपेट में है। आज विश्व के सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट पर भी कचरा मानव के कारण ही पहुँचा है। बाकी तो आने वाले भयावह स्थिती का इंतजार कर रहे है। आज भारत के ज्यादातर भागों में पानी की कमी का रोना है। शहरों या गाँव में पानी के लिए लंबी-लंबी लाइनों पर घंटों इंतजार करना पडता है। नदियों में पानी का स्तर घटता जा रहा है। झीलें सुख रही है। आखिर ऐसा क्यों इसका सबसे बडा कारण है पहाडों व जंगली क्षेत्रों का वातावरण उतारना जहाँ-जहाँ भी वन है वहाँ पानी की कमी नहीं है भारत में 70% कृषक पशुपालन से ही आय करते हैं एवं वनों पर ही आश्रित है। जितनी भूमि पर वन हैं वहाँ पानी अमृत का रूप धारण कर मानव को जल पीकर उसकी बेश कीमती कृर्षि धंधों की पूर्ति करता है यदि हिमालय पर्वत पानी उपलब्ध न कराए तो समूचे भारत की कृर्षि शून्य होकर रह जाएगी। वर्तमान परिपेक्ष्य में देखा जाए तो भारत में हाथियों की संख्या 1997 की जनगणना में 2900 पाई गई थी तथा जंगली क्षेत्र का हवास व तस्करों द्वारा हाथियों की हत्या आदि का प्रतिकूल प्रभाव पडा है। जबकि विश्व में सबसे ज्यादा हाथी दक्षिण अफ्रीका क्षेत्र में है जो 2,50,000 के लगभग है। इसका कारण वहाँ वन क्षेत्र प्रचुर मात्रा में विद्ममान है। भारत में बाघों के निरंतर कम होती संख्या से इसके संरक्षण के लिए 3 दशक पहले बाघ परियोजना पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पिछले कुछ वर्षों से बाघों की संख्या में भारी कमी आई हैं। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि बाघों को कौन मार रहा है। यह सारा इतना गुपचुप तरीके से हो रहा है कि इसकी जानकारी किसी को नहीं है। केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारों को चाहिए कि पर्यावरण व वन्य जीव सुरक्षा हेतु एक कारगर नीति बनाए जहाँ वन्य जीवों को ज्यादा से ज्यादा वन क्षेत्र मिले जहाँ वे स्वेच्छा से विचरण कर सकें। </p></span></a> </p>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-17803270645150613352009-11-27T05:28:00.000-08:002009-11-27T05:29:13.403-08:00दूषित पर्यावरण और विलुप्त होते वन्य जीव<span class="news_hd" style="padding-left: 10px;"> <a id="txt_lead" class="lead" style="display: inline-block; width: 600px;"><br /></a></span> <hr style="width: 620px;"> <!--News Content--> <span style="padding-left: 30px;" class="grd_lbl"></span><br /> <p style="text-align: justify;"> <a href="http://www.pisuindia.com/ReadNews.aspx?Ntype=PArti&myId=7#" class="boxdtl"><span id="TB_NNews_dtl"><p style="text-align: justify;">विश्व की सबसे बडी समस्या नवजाति की आदि काल के साथी जंगलों वनों की रियाली, वन्य प्राणियों को बचाने की है। आज प्रकृति को बेरहमी से दोहन किया जा रहा है। बदले में प्रकृति भी विनाश का तांडव रचकर मानव जाति को किए का नतीजा दे रही है। आज विश्व में प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति बिगडे पर्यावरण से उत्पन्न प्रदूषणों, जल, वायु आदि प्रदूषण से ग्रसित है। यदि प्रदूषित शहरों की बात की जाए तो भारतवर्ष के महानगर इसमें पहले स्थान पर हैं आदि काल से मानव जाति व घने जंगलों व नदी, नालों वन्य प्राणियों से जो सानिध्य रहा है वहीं सानिध्य आज भी बरकरार रहना चाहिए था। यही कडवा प्राकृतिक संतुलन का नियम है। विकास की अंधी दौड में हमने पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचायी है। औद्योगिक क्रांति के बाद फासिल इंधनों का जमकर उपयोग हुआ। इससे वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे है और समुद्र का जलस्तर तेजी से बढने लगा है। विश्वस्तर पर पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से निपटने के लिए तेजी से इंतजाम किया जा रहा है, लेकिन हम अभी इस मामले में काफी पीछे है। इसकी मुख्य वजह है जलवायु और भूमी को प्रदूषित करने में खतरनाक रसायनों के अलावा प्लास्टिक, तम्बाकू युक्त पदार्थ व बायो मैडिकल कचरा भी अहम भूमिका निभा रहा है। हमारे रोजमर्राह के प्रयोग में पोलीथीन का इस कदर प्रयोग होता है और जिसे लोक कचरे में फेंक देते हैं वह सडता नहीं है और नालियों में व खुले वातावरण में चारो तरफ फैले हुए मिलते है। पर्यावरण में चारों तरफ फैले हुए मिलते है। पर्यावरण प्रदूषण के आंकडों पर नजर डाले तो काफी भयावह तस्वीर उभर कर सामने आती है। वातावरण में छोडे जाने वाले लगभग 4000 रसायनों में से 43 खतरनाक कैंसर रोग का कारण बनते हैं दुनियाभर में 5 वर्ष तक की आयु के 2000 बच्चे हर साल दूषित पानी की वजह डायरिया के शिकार हो जाते है। ग्लोबल वार्मिंग की वज़ह से प्रति वर्ष 1,50,000 लोग अस्माक मौत के मुँह में समा जाते है। इसके अलावा हमारे द्वारा बहाया गया खतरनाक केमिकल और जहाजों से रिसने वाला तेज़ सैकडों जीवन जंतुओं की मौत का कारण बनता है। आज इस पर्यावरण हवास की वजह से ही विश्व में कहीं अनावृष्टि हो रही है तो कहीं पर अतिवृष्टि हो रही है कहीं पर भयंकर बाढ आ रही है तो कहीं भयंकर सूखा। वर्तमान में भारत का वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का 19 प्रतिशत ही वनाधीन है। बाकी हिस्सा या तो खेती के प्रयोग में हो रहा है या तो शहरी चपेट में है। आज विश्व के सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट पर भी कचरा मानव के कारण ही पहुँचा है। बाकी तो आने वाले भयावह स्थिती का इंतजार कर रहे है। आज भारत के ज्यादातर भागों में पानी की कमी का रोना है। शहरों या गाँव में पानी के लिए लंबी-लंबी लाइनों पर घंटों इंतजार करना पडता है। नदियों में पानी का स्तर घटता जा रहा है। झीलें सुख रही है। आखिर ऐसा क्यों इसका सबसे बडा कारण है पहाडों व जंगली क्षेत्रों का वातावरण उतारना जहाँ-जहाँ भी वन है वहाँ पानी की कमी नहीं है भारत में 70% कृषक पशुपालन से ही आय करते हैं एवं वनों पर ही आश्रित है। जितनी भूमि पर वन हैं वहाँ पानी अमृत का रूप धारण कर मानव को जल पीकर उसकी बेश कीमती कृर्षि धंधों की पूर्ति करता है यदि हिमालय पर्वत पानी उपलब्ध न कराए तो समूचे भारत की कृर्षि शून्य होकर रह जाएगी। वर्तमान परिपेक्ष्य में देखा जाए तो भारत में हाथियों की संख्या 1997 की जनगणना में 2900 पाई गई थी तथा जंगली क्षेत्र का हवास व तस्करों द्वारा हाथियों की हत्या आदि का प्रतिकूल प्रभाव पडा है। जबकि विश्व में सबसे ज्यादा हाथी दक्षिण अफ्रीका क्षेत्र में है जो 2,50,000 के लगभग है। इसका कारण वहाँ वन क्षेत्र प्रचुर मात्रा में विद्ममान है। भारत में बाघों के निरंतर कम होती संख्या से इसके संरक्षण के लिए 3 दशक पहले बाघ परियोजना पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पिछले कुछ वर्षों से बाघों की संख्या में भारी कमी आई हैं। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि बाघों को कौन मार रहा है। यह सारा इतना गुपचुप तरीके से हो रहा है कि इसकी जानकारी किसी को नहीं है। केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारों को चाहिए कि पर्यावरण व वन्य जीव सुरक्षा हेतु एक कारगर नीति बनाए जहाँ वन्य जीवों को ज्यादा से ज्यादा वन क्षेत्र मिले जहाँ वे स्वेच्छा से विचरण कर सकें। </p></span></a> </p>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-76732013965063550542009-11-17T08:02:00.000-08:002009-11-17T08:04:31.323-08:00पत्रकारिता की भूमिका<span class="news_hd" style="padding-left: 10px;"> <a id="txt_lead" class="lead" style="width: 600px;">पत्रकारिता की भूमिका</a></span> <hr style="width: 620px;"> <!--News Content--> <span style="padding-left: 30px;" class="grd_lbl"></span><br /> <p style="text-align: justify;"> <a href="http://www.pisuindia.com/ReadNews.aspx?Ntype=BBol&myId=4#" class="boxdtl"><span id="TB_NNews_dtl"><p style="text-align: justify;">हमारे देश में पत्रकारिता को चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह बात हमें दर्शाती हैं, कि हमारे समाज व देश के लिए पत्रकारिता कितनी महत्वपुर्ण हैं। पत्रकारिता की भूमिका निर्माण पूर्ण होनी चाहिए। ‘सच्चाई को सामने लाना चाहिए’ एक महत्वपुर्ण शब्द है। पत्रकारिता में बेजुबानो की आवाज बननी चाहिए समाज की गंभीर समस्याओं को समाज के पटल में रखना चाहिए। आम लोगों की आवज जो कि उच्च पदों पर बैठे लोगों तक नहीं पहुँच पाती है। उन की आवाज को उन के कानों तक पहुँचाना एक जिम्मेदार पत्रकार का कर्त्तव्य है। पत्रकारिता को निस्पक्ष होना आवश्यक है। बात सिद्धान्तों की होनी चाहिए। लेकिन समय के बदलते दौर के साथ हमने सिद्धांतों को खूँटी पर लटका दिया है, आज बात सिर्फ सिद्धान्त की होती है परंतु करनी और कथनी मे बहुत फर्क होता है। आज पत्रकारिता के मायने, स्वरूप और लक्ष्य बदल चुका है। आज आधुनिक संचार पत्रकारिता के युग में भारत के आम लोगों की आवाज दब कर रह गई है जो समाचार सामने लाने चाहिए, कई ज्वलंत मुद्दों को दबा दिया जाता है। आज खबरों का मतलब सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन बन कर रह गई है। आज समाचार वाचक व वाचिका कम माँडल ज्यादा लगती है। लेकिन अंधेरी सुरंग के एक कोने से रोशनी आ रही है। आज भी पत्रकारिता के सिद्धांतों को कुछ लोगों ने जिन्दा रखा है और मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय मे युवा इस उम्मीद को कायम रखेगें। </p></span></a> </p>murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-50379168387743130592009-11-14T05:46:00.000-08:002010-10-09T23:26:02.257-07:00 <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><span style=""> </span><span style=""> </span><b>det¨j y¨dra= v©j ?k¨Vkys <o:p></o:p></b></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><b><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><b><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><span style=""> </span></span></b><b><span style="font-size: 28pt; font-family: Agra;">Hkk</span></b><b><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">jr esa 20# jkst dekus vkSj [kkus fd izfr‘kRrk esa dksb lq/kkj ugha gqvk ogh djksM+ks #i;s ?kksVkys fd QsgfjLr es ,d uke vkSj 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line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">n¶rj¨a ls ysdj dpgjh;¨a rd ;gk¡ [kSjkr cVrh gS-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">m/k¨xifr]O;ikjh Hkh usrkv¨ o vf/kdkjh;¨ d¨ ?kwl nsrs gS]ml dh Hkjikà vke vkneh d¨ fup¨M+dj v©j Bx dj djrh gS- lRrk #ih xaxk esa gj lRrk/kkjh Mqcdh yxkrk v©j ?k¨Vkyk dj d¢ cgkj fudyrk v©j iq.; dekrk-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">bl [ksy dh ‘kq#vkr usg# ‘kklu dky ls gqbZ- mu d¢ dk;Zdky esa gh ns‘k dk igyk ?k¨Vkyk gqvk Fkk- tc Ñ</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">.esuu us thi ?k¨Vkyk fd;k] Hkkjr ljdkj us yanu dh ,d QeZ d¨ 200 thIk d¢ fy, vkMZj fn;k Fkk- iqjk iSLkk nsus d¢ ckn Hkh ek= 155 thi gh Hkkjr iWgqp ik;h]216 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k Xk;k Fkk- ml d¢ ckotqn usg# us bl dke dh rkjhQ dh v©j Ãuke d¢ r©j ij eaU=heaMy esa ea=h in fn;kA <span style=""> </span>1957 esa ewnaMk dkaM d¢ ckn usg# eU=haeaMy d¢ nqljs tulsod Hkz</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">Vusrk Vh-Ñ</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">.kepkjh foRreU=h] foRrlfpo ,p-,e- iVsy m/k¨xifr gfjnkl ewan~Mk us 125 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk<span style=""> </span>fd;k- bl d¢ ckotwn usg# us mls ea=heaM~y es nqljh ckj txg nh- /keZrstk dkaM ij r¨ <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">/kqy teha jgh-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">1971 esa ukxjckyk dkaM 1995 esa ek#rh Hkwfe ?k¨Vkyk]1980 esa rsy ?k¨Vkyk] 1981 ese egkjk</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">Vª flesaV ?k¨Vkyk-,-vkj- us 30 dj¨Mak dk ?k¨Vkyk fd;k-1982 esa pqjgV ykVjh dkaM- jktho xkW/kh d¢ ‘kklu dky esa 1987 esa c¨Q¨lZ r¨i ?k¨Vkyk Nk;k jgk lkjs ns‘k es Hkqpky lk vk x;k blh d¢ pyrs jktho d¨ lRrk ls gkFk /k¨uk iM+k] r¨i d¢ fy, LohMu dh daiuh d¨ Qk;nk igqpk;k¡- brkyoh] Dok=¨ph] </span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";"></span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">64 dj¨M+ dk ?k¨VkysckTk½ Hkh vkj¨ih gS- ;w-ih-, ljdkj d¢ vkrs gh Dok=¨fp d¢ lhy [kkr¨ ls j¨d gVk fn xÃ-bl rjg l¨fu;k us fe= /keZ fuHkk;k-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">1989 esa lar dhVl dkaM ftl esa LoxÊ;- bafnjk xkW/kh d¢ ?kfu</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">V jgs rkaf=d pUæLokeh] oh-ih flag jko us 21 fefy;u Mkyj dk ?k¨Vkyk fd;k- 1992 esa r¨ ?k¨Vky¨ dk esyk gh yx x;k- ,-Mh- ,e-d¢ dh v/;{k o eq[;ea=h t;yfyrk o mldh lgsyh us in d¢ ihNs] rkalh Hkwfe ?k¨Vkyk dk iVk{ksi fd;k 61 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk- 1992 esa fg ‘ks;j ?k¨Vkys us<span style=""> </span>ns‘k d¨ LrEC/k dj fn;k- g</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">kZn esgrk us 10 gtkj dj¨M+ dk ?k¨Vkyk<span style=""> </span>fd;k- 1992 es+ ,d v©j cgqpÆpr<span style=""> </span>?k¨Vkyk lkeus vk;k] QtÊ LVkEi ?k¨Vkyk lkeus vk;k- QtÊ LVk~Ei isij ?k¨Vkyk vCnqy djhe rsyxh us 32000 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k- bl esa dà vf/kdkjh usrk] Nxu Hkqtcy<span style=""> </span>‘kjn iokj v©j egkjk</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">Vª d¢ eq[;e=ha v‘k¨d pOgk.k <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">dk uke Hkh mNyk gS-10 yk[k #i;s rsyxh ls fy, Fks-1992 QkbusUkf‘k;y lÆolst ?k¨Vkyk<span style=""> </span>d¢ru ikjs[k] gsru ikjs[k ij <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">‘ks;j ?k¨Vkyk dSuucSad Qkbusuf‘k;y lÆolst d¢ lkFk 47 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">1993 esa dkXkszal us viuk dkyk psgjk fn[kk;k bl ljdkj us<span style=""> </span>LoÆx;- ih -oh ujflEgka jko us viuh ljdkj d¨ cpkus d¢ fy, >k-eq-e¨ d¢ v/;{k f‘kcq l¨jsu lesr ikWp lklan¨ d¨ ljdkj d¢ i{k esa o¨fVax djus d¢ fy, dj¨M¨+ #Ik;s dh fj‘or nh xà v©j ljdkj<span style=""> </span>ckpkà ;g ekeyk Hkh yfEcr gS-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">1995 ljdkjh vkokl ?k¨Vkyk ljdkjh deZpkjh;¨a d¨ fcuk<span style=""> </span>ckjh d¢ vkokl vkoVWu<span style=""> </span>esa rkRdkyhu dkXkszal ljdkj d¢ ‘kgjh fodkl ea=h ‘khyk d©y] d¢fUæ; ea=h ih- d¢ Fkqxu lfgr dà y¨x fj‘or ysdj ljdkjh vkokl vkoafVr djok, bu ij vkj¨i r; g¨ pqd¢ gS-1995] fcgkj esa pkjk ?k¨Vkyk ykyw ;kno us eq[;e=h jgrs gq, 950 dj¨M+ #i;s dk pkjk ?k¨Vkyk fd;k]QtÊ vkokl<span style=""> </span>fuekZ.k i‘kq pkjk] nokà ]midj.k [kjhnus es+ QtÊ ck<+ jkgr ?k¨Vkyk 1995 esa fcgkj dh turk ck<+ ls tq> jgh Fkh] gtkj¨ y¨x ej jgs<span style=""> </span>Fks y¨x¨ d¢ ?kj rckg g¨ pqd¢ Fks] y¨x viuh tku cpkus dh Tkn~n¨tgn es+ yxs gq, Fks] m/kj ljdkj }kjk Hksth xà ck<+ jkgr jk‘kh d¨ lk/kq ;kno lkQ<span style=""> </span>djus es O;Lr <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">Fks- v©j dj¨M¨+ #i;s dk ?k¨Vkyk fd;k- 1996 ;qfj;k ?k¨Vkyk ;g Hkh dkXkszal ljdkj d¢ Á/kkUke=ha LoxÊ; ujflEgka jko d¢ N¨Vs csVs ÁHkko jko o EkU=ha y[kUk ;kno us 133 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k- 1996 lapkj ?k¨Vkyk nwjl+apkj ea=h lq[kjke us 4-5 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k lq[kjke d¢ ?kj ls u¨V¨ dh c¨fj;Wk lhch-vkà d¢ }kjk cjken gqÃ-2009 d¨ mPprEk U;ky; dk QSlyk vk;k lq[kjke d¨ rhu lky dh ltk gqà ]ijUrq csy Hkh rHkh fey xÃ-1999 esa ns‘k d¢ ohj toku dkjfxy dh yM+kà yM+ jgsa ] mud¢ ‘kghn g¨us ij usrk Hkh iSls cV¨jus es yxs Fks] rkcqr dh [kjhnkjh 2 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk gqvk] 2001 es- cjkd felkÃy dh [kjhnkjh 2 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk gqvk]2001 esa okjkd felkÃy dh [kjhn esa dj¨M¨+ dk ?k¨Vkyk dj x,]usrk ;g ckr rc lkEkus vkà tc rgYkdk d¢ Vsi esa t;k tsVyh] caxk# y{e.k d¨ ?kwl ysrs fn[kk;k x;k-2003 ek;korh dgk¡ ihNs jgus okyh uke gh ek;k ;kfu ek;k dh nsoh us rkt d¨fjM¨j ls 175 dj¨M+ dh ek;k us gkFk lkQ fd;k-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">2004 esa orZeku mM;u ea=h ÁQqy iVsy vkV¨jkÃl Qkbusul ?k¨Vkys esa 41-5 dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k -2004 esa gh fcgkj d¢ Mh-,e x©re x©Lokeh us ck< jkgr ?k¨Vkyk fd;k 17 dj¨M+ dk- 2005 es rsy d¢ cnys vkukt ?k¨Vyk iqoZ ea=h uVoj flag d¢ iq= <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">txr flag dh daiuh us dj¨M¨+ dk ?k¨Vkyk fd;k- 2006 es+a ekdik usrk ih-fot;u Hkh Hkz</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">Vkpkj d¢ d¢l es Qal x,-ysofyu ?k¨Vkyk es 17 dj¨M+ dk-2007 iatkc dkHkwfe ?k¨Vkys esa veszUæ flga Ql pqd¢ gS-mu ij pkj d¢l¨ es ls ,d es n¨</span><span style="font-size: 24pt; font-family: "Kruti Dev 011";">“</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">kh ik, x, gS- 2007 esa xsgq¡ ?k¨Vkyk ;q-ih-, ljdkj esa e=ha<span style=""> </span>deyukFk us egWxh nj¨a ij fons‘k¨ ls xsgqW dk vk;kr fd;k 19l© dj¨M+ dk ?k¨Vkyk fd;k-2008 xkft;kckn es 25dj¨M+ dk th-ih-,Q ?k¨Vkyk]34 tt¨ d¢ iDd¢ lcqr feys gS-bl ?k¨Vkys es fyIr g¨us d¢- fnYyh d¢ Mh-Mh-, ¶ySV ?k¨Vkyk ns‘k dh vFkZO;oLFkk d¨ fgyk nsus okyk LkR;e ?k¨Vkyk 7]8000 dj¨M+ dk<span style=""> </span>oh-jkekfyaxe jktq us QtÊ lEkiRrh dk QtÊ deZpkjh;¨ d¨ fn[kkdj dj¨M+ #i;s dk ?k¨Vyk fd;k-<o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">,d vuqeku d¢ eqrkfcd n¨ yk[k dj¨M+ Mkyj vc rd ?k¨Vkysckt¨ dh tsc¨ es tk pqfd<span style=""> </span>gS-ns‘k dk lkjk iSLkk Lohl cSd¨a es dkyk/ku d¢ #i esa Bql j[kk gS- v¨j turk o ns‘k dtZ d¢ c¨> ls nck gqvk gS- vc le; vk x;k gS] bl y¨dra= #ih xqykeh dh tathj¨ d¨ m[kkM+ Q¢daus dk- fuHkZ; g¨dj vak/kh dk rst >¨dk cuus dk] ,sLkk >¨dak t¨ bl usRkk #ih dpMs+ d¨ nqj cgk ys tk,- bl dk;Z d¨ djus d¢ fy, d¨Ã Hkxoku ugha vk,xk] ges [kqn<span style=""> </span>fu.kZ; ysuk g¨xk-Lo;a [kM+ g¨uk g¨xk] v©j dkjWok cukuk g¨xk- jkLrs curs <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;">pys tk,xsa] lcls CkMh+ rkdr ge esa fufgr gS-cgqr g¨ x;k vc r¨ tkx¨a]tku¨ viuh {kerkv¨a d¨ viuh rkdr d¨ c<kv¨]v©j Nhu y¨ viuh LorU=ark d¨-<span style=""> </span>ns‘k d¢ HkkX;fo/kkrk cu¨] v©j m[kkM+ Q¢d¨a ns‘k dh ttZj g¨ pqdh O;oLFkk d¨ -mB¨ U;k; d¢ egkuk;d¨ mB¨- ,slh O;oLFkk d¢ fy, tgk¡ lcdqN ikjn‘kÊ g¨] tgk¡ lp dh vktknh g¨] xq.Ms] ekfQ;k u g¨] tgkW rqe [kqn [kMs+ g¨dj fdlh Hkh uhfr v©j fu;e ij loky dj ld¨ v©j mldk tokc ik ld¨</span><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 24pt; line-height: 115%; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size: 24pt; line-height: 115%; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; line-height: normal;"><b><span style="font-size: 24pt; font-family: Agra;"><o:p> </o:p></span></b></p> murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-87189959716975258602009-11-11T03:23:00.000-08:002009-11-11T03:27:01.755-08:00भोगतंत्र से तिकड़म तंत्रभोगतंत्र से तिकड़म तंत्र<br /><br />संसदीय शासन के तौर तरीके व्यक्तिगत सत्ता के स्थान पर बहुमत को सिद्ध करने के सिद्धांत पर टिका है, यहाँ सभी सत्ता पक्ष व विपक्ष बहुमत को सिद्ध करने में सभी साम, दाम, दण्ड, वेद का इस्तेमाल कर विरोधियों को धन के बल पर बाहुबल से बहुमत के निर्णय को अपने पक्ष में कर देता है। सवा अरब की आबादी वाले मुल्क में वास करने वाली भेड़ों (जनता) को कुछ मुठ्ठी भर गडरीया हाक रहे हैं। मानव समुदाय को प्राकृति की महत्वपूर्ण और अनुपम देन है। यह समझना बेवकूफी होगी कि गडरियों की संख्या केवल पाँच दस हजार लोगों जनता सवा अरब भेड़ रूपी भारतीय जनमानस को हाक रहे है वे चाहे इन भेड़ों को बकरों से लडायें क्योंकि अगर इन दोनों में लड़ते हुए कोई एक मर गया तो इनकी चाँदी हो जाएगी और दोनो मर गए तो सोने पर सुहागा। राजनीति की इस उठा पटक के परिणामों के रुप में सामने आते हैं तो केवल शासक वर्ग का गिरा हुआ वैदिक स्तर इन सब परिस्थितियों से राष्ट्र और राज्य की दुर्दशा पर कितना कष्ट होता है। इसका आंकलन नहीं किया जा सकता है इस कटु सच का विरोध केवल एक धूंर्त राजनितज्ञ ही कर सकता है। क्या सरकार के नेताओं को किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? गवर्नल, मंत्रियों की इच्छाओं और आदेशों के परिणामों के लिए दोषी कौन होगा ? किसी बुद्धिमान नेता का कार्य रचनात्मक विचारों तथा लोकहितकारी योजनाओं को मूर्त रूप देना है या धूर्त और उजड़ व जनप्रतिनिधियों को संसद में पहुँचाना। जो केवल मंत्री पद और नोट के लिए चापलूसी करते है। प्रतिभाशाली व्यक्तियों के कार्यों में हमेशा जन साधारण की निष्क्रियता बाधक बनती रही है इस बाधा को दूर करने के लिए उसके पास तीन विकल्प है एक तो इन मूर्खों, भेड़ों के (झुण्ड) भीड़ को खरीद ले दूसरा राष्ट्र जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने का विरोध करें। तिसरी राजनैती से सन्यास ले लो। ऐसी परिस्थितियों में ईमानदार नेता को राजनीतिक विवशता होती है। वहीं दूसरी और उसकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा । सच्चे राष्ट्र भक्त और ईमानदार नेता को राजनीतिक ठेकेदारी के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। हर नेता को राजनीति का खेल खेलने की खुजली होती है परन्तु यह सरकारें विकास को पूर्ण रूप से रोक लेते हैं। राजनीतिक ठेकेदार जितना अधिक संकुचित द्रृष्टकोण वाला और बुद्धिमान होगा उसकी राजनैतिक जानकारी उतनी ही सही होगी वह इस व्यवस्था को बहुत पसन्द करता है क्योंकि इसमें रचनात्मक प्रतिभा की कोई आवश्यकता नहीं होती, न ही श्रेष्ठतम गुणों की। इस गन्दी राजनीति का कड़वा सच है कि यहाँ सत्ताधारियों को निजी योग्यता जितनी घटती है इन नेताओं की कीर्ति उतनी ही बढ़ती है राजनेता व्यक्तिगत रूप से संसदीय बहुमत पर जितना अधिक निर्भर होगा उसकी भौतिक प्रतिभा और कार्य करने की क्षमता कम होगी। राजनीतिक चालबाज जो भी काम करते हैं जनता की स्वीकृति पाने के लिए कई प्रकार की चाले चलते हैं, हमेशा अपनी जिम्मेदारी दूसरे नेता के कंधो पर डालने के लिए योग्य साथियों की तलाश करते रहते है। जो वक्त आने पर उनके काम आ सके यह परम सच है कि व्यक्ति विशेष का स्थान बहुमत नहीं हो सकता। एक बुद्धिमान व धैर्यवान व्यक्ति जिसे कुशलता से किसी कार्य को पूर्ण करता है। उसी प्रकार एक योग्य प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जिसे कुशलता से शासन की बागडोर सम्भालना है और लोक कल्याण के कार्य करता है। चुने गए सैकडों मूर्ख प्रतिनिधि मिलकर भी वह कार्य नहीं कर सकते। नेता बहुत ही उतावले और महत्वकांक्षी होते हैं उनको अपनी बारी का इंतजार करने तक का सब्र नहीं होता। वह लम्बी लाईन में खडे नहीं होना चाहते है बल्कि पद पाने के लिए उससे जुड़ें हुए हर परिवर्तन का गहन अध्ययन करते है। श्रेष्ठ नेता के गुणों की जानकारी मिलते ही उसके खिलाफ मोर्चा संगठित किया जाता है परिणाम स्वरूप या तो वह नेता खुद ही सत्ता और वपद को त्याग देता है "या फिर तथाकथित यशस्वी उल्लुओं की टोली में शामिल होकर उन्ही की बोली बोलने लगता है"। सार्वजनिक हित के नाम पर नहीं छोड़ना या फिर वे उसे निकाल बाहर नहीं करते पद छोड़ने वाला व्यक्ति जानता है कि उसे दुबारा यह पद आसानी से नहीं मिलने वाला है इसलिए आसानी से नहीं छोड़ता बल्कि उसे पद छोड़ने के लिए विवश किया जाता है ऐसे नेता बार-बार उस पद को पाने की इच्छा लिए लाईन में खडे इंतजार करते है हर संभव प्रयास करते रहते है। और तब तक करते रहते हैं, जब तक महत्त्वाकांक्षी नेता अपनी ताकत से उन्हें पार्टी से बाहर नहीं करते । मंत्रियों के पदों के लिए होने वाले तोल-मोल और सौदेबाजी भारतीय लोकतंत्र के खोखलेपन को साफ उजागर करता है एक नेता से पद छीनकर दूसरे नेता को मंत्री पद से नवाजना यह क्रम धीरे-धीरे घटता जाता है हर परिवर्तन के साथ राजनेता का स्तर भी गिरता चला जाता है। अंत में वह न घर का रहता है और न घाट का केवल तुच्छ प्रवृति के राजनीतिक दलाल ही शासन कर रहे है ऐसे नेता केवल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए हर रोज नये सौदेबाजी करते है नये गठबंधन करते है और जोड़-तोड़ करते रहते है कभी उनको कुत्ते कहते है तो कभी उनके तलवे चाटते नजर आते है।murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-39658640230035087852009-10-30T04:48:00.000-07:002010-10-09T23:26:02.267-07:00तजा तजा -नया नयाआपके शब्दों में बेकरारी की झलक है
<br />आपके भावनाओ में उम्मीद की कसक है
<br />कभी मन की आँखों से दिल की गहराई में तो झांकिए
<br />एक लों है जो अब भी आप की उम्मीद लिए टिमटिमाता है (01)murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2572457207352078523.post-72079829333001818032009-10-30T04:26:00.000-07:002009-10-30T05:06:08.470-07:00हवाओ में गूंजते शब्द (गुरु जी की कलम से )शब्द जो गूंजते रहे <br />नाद बनकर <br />हवा में <br />अदृश्य तिनको की तरह <br />टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास <br />बवंडर के तरह <br />घूरते रहे मुझे, <br />शब्द जो चुभते रहे <br /> अंतस में मेरे रह - रह कर <br /> काँटों की तरह <br />मैं चुनता रहा हर शब्द को <br />टाँकता रहा कलम की नोक से <br />सादे पन्नो पर <br />मिलते रहे शब्द से शब्द <br />शब्द जाल बनते रहे <br />फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में <br />फड - फडाते रहे पंख <br />निकलती रही ध्वनिया <br />फड - फड , सड़- सड़ ,<br /> हा - हा , हु - हु तड - तड <br />कभी ठहाके <br />कभी तालिया <br />कभी अट्टहास <br />गूंजते रहे हवा में <br />शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............ <br />शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!शब्द जो गूंजते रहे <br />नाद बनकर <br />हवा में <br />अदृश्य तिनको की तरह <br />टकराते रहे मुझसे फटकते रहे आसपास <br />बवंडर के तरह <br />घूरते रहे मुझे, <br />शब्द जो चुभते रहे <br /> अंतस में मेरे रह - रह कर <br /> काँटों की तरह <br />मैं चुनता रहा हर शब्द को <br />टाँकता रहा कलम की नोक से <br />सादे पन्नो पर <br />मिलते रहे शब्द से शब्द <br />शब्द जाल बनते रहे <br />फंसते रहे पतंगे उलझते रहे शब्द जाल में <br />फड - फडाते रहे पंख <br />निकलती रही ध्वनिया <br />फड - फड , सड़- सड़ ,<br /> हा - हा , हु - हु तड - तड <br />कभी ठहाके <br />कभी तालिया <br />कभी अट्टहास <br />गूंजते रहे हवा में <br />शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ............ <br />शब्द बनते रहे और गूंजते रहे हवा में ....... .....!murarhttp://www.blogger.com/profile/07534783902110829174noreply@blogger.com0